फूटी आँखें जीव की, तम भी नहीं दिखाय |
तमसो मा ज्योति गया, चकाचौंध अतिकाय |
चकाचौंध अतिकाय, भोगते रेड्डी - कोड़ा |
लीज छीज खा खनिज, करोड़ों जोड़ा - तोड़ा |
पर रविकर पड़ जाय, तमन्चर अधिक उजाला |
आँखे जाती फूट, बदन पड़ जाता काला ||
तमन्चर=निशाचर, राक्षस, उल्लू
बहुत खूब गजब की अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमजे दार वह भी बिलकुल सत्य ! बधाई गुप्ताजी !
ReplyDeleteपढ़ा।
ReplyDeleteआपकी कुण्डलिया का जवाब नहीं रविकर जी!
ReplyDeleteBeautiful msg in a beautiful way .. great.
ReplyDeleteसन्नाट झन्नाटा।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सन्देश अत्यंत ही रोचक शैली में...उजाले में
ReplyDeleteदिखाई देने लगे हैं इनके चेहरे ....बहुत बहुत बधाईयां !!
चकाचौंध अतिकाय, भोगते रेड्डी - कोड़ा |
ReplyDeleteलीज छीज खा खनिज, करोड़ों जोड़ा - तोड़ा
मारते रहो इनको व्यंग्य कोड़े .
गजब की अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteप्रिय रविकर जी ...सुन्दर भाव प्यारी रचना गजब का रंग दिया मन को छू गयी ...काले मन वालों का और भी ....
ReplyDeleteढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
थोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना
भ्रमर ५