(१)
सरकारी बन्धुआ मिले, फ़ाइल रक्खो दाब,
किरण-केजरीवाल का, खेला करो खराब |
खेला करो खराब, बहुत उड़ते हैं दोनों --
न नेता न बाप, पटा ले जायँ करोड़ों |
कह सिब्बल समझाय, करो ऐसी मक्कारी,
नौ पीढ़ी बरबाद, डरे कर्मी-सरकारी ||
(२)
खाता बही निकाल के, देखा मिला हिसाब,
फंड में लाखों हैं जमा, लोन है लेकिन साब |
लोन है लेकिन साब, सूदखोरों सा जोड़ा,
निकले कुल नौ लाख, बचेगा नहीं भगोड़ा |
अफसर नेता चोर, सभी को एक बताता |
फँसा केजरीवाल, खुला घपलों का खाता ||
धन्यवाद वीरू-भाई
धन्यवाद गाफिल जी
बहुत ज़ोरदार प्रस्तुति भाई साहब !
ReplyDelete"उम्र अब्दुल्ला उवाच :"
माननीय उमर अब्दुल्लासाहब ने कहा है यदि जम्मू -कश्मीर लेह लद्दाख की उनकी सरकार विधान सभा में तमिल नाडू जैसा प्रस्ताव (राजिव के हत्यारों की सज़ा मुआफी ) अफज़ल गुरु की सजा मुआफी के बारे में पारित कर दे तो केंद्र सरकार का क्या रुख होगा ।
जब इसके बाबत केंद्र सरकार के प्राधिकृत प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया जनाब टालू अंदाज़ में बोले ये उनकी वैयक्तिक राय है,मैं इस पर क्या कहूं ?
बात साफ़ है राष्ट्री मुद्दों पर कोंग्रेस की कोई राय नहीं है ।
और ज़नाब उमर अब्दुल्ला साहब ,न तो नाथू राम गोडसे आतंक वादी थे और न ही राजीव जी के हत्यारे .एक गांधी जी की पाकिस्तान नीति से खफा थे ,जबकि जातीय अस्मिता के संरक्षक राजीव जी के हत्यारे राजीव जी की श्री लंका के प्रति तमिल नीति से खफा थे .वह मूलतया अफज़ल गुरु की तरह आतंक वादी न थे जिसने सांसदों की ज़िन्दगी को ही खतरे में नहीं डाला था ,निहथ्थे लोगों पर यहाँ वहां बम बरसवाने की साजिश भी रच वाई थी .संसद को ही उड़ाने का जिसका मंसूबा था .ऐसे अफज़ल गुरु को आप बचाने की जुगत में हैं क्या हज़रात ?
बहुत ज़ोरदार प्रस्तुति भाई साहब !
ReplyDeleteकह सिब्बल समझाय, करो ऐसी मक्कारी,
नौ पीढ़ी बरबाद, डरे कर्मी-सरकारी ||
"उम्र अब्दुल्ला उवाच :"
माननीय उमर अब्दुल्लासाहब ने कहा है यदि जम्मू -कश्मीर लेह लद्दाख की उनकी सरकार विधान सभा में तमिल नाडू जैसा प्रस्ताव (राजिव के हत्यारों की सज़ा मुआफी ) अफज़ल गुरु की सजा मुआफी के बारे में पारित कर दे तो केंद्र सरकार का क्या रुख होगा ।
जब इसके बाबत केंद्र सरकार के प्राधिकृत प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया जनाब टालू अंदाज़ में बोले ये उनकी वैयक्तिक राय है,मैं इस पर क्या कहूं ?
बात साफ़ है राष्ट्री मुद्दों पर कोंग्रेस की कोई राय नहीं है ।
और ज़नाब उमर अब्दुल्ला साहब ,न तो नाथू राम गोडसे आतंक वादी थे और न ही राजीव जी के हत्यारे .एक गांधी जी की पाकिस्तान नीति से खफा थे ,जबकि जातीय अस्मिता के संरक्षक राजीव जी के हत्यारे राजीव जी की श्री लंका के प्रति तमिल नीति से खफा थे .वह मूलतया अफज़ल गुरु की तरह आतंक वादी न थे जिसने सांसदों की ज़िन्दगी को ही खतरे में नहीं डाला था ,निहथ्थे लोगों पर यहाँ वहां बम बरसवाने की साजिश भी रच वाई थी .संसद को ही उड़ाने का जिसका मंसूबा था .ऐसे अफज़ल गुरु को आप बचाने की जुगत में हैं क्या हज़रात ?
behad shandaar...aapki bidha aaur is chuteele pan ko naman..ganesh chaturthi ki badhayi ke sath
ReplyDeleteबहुत सामयिक प्रहार किया है रविकर जी अपने ,बेहतरीन रचना को सम्मान जी
ReplyDeleteजाँच की आँच से सब परेशान है क्या?
ReplyDeleteकाश इस पर तो सहमति बने।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहे लिखे हैं आपने!
ReplyDelete--
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की लगाई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बढ़िया कुंडलिया छंद ... सरकार सारे दांव पेंच खेल रही है ..
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