Tuesday, 6 September 2011

अमर दोहे




 Sanjay Dutt, Manyata and Amar Singh
व्यर्थ  सिंह  मरने  गया,  झूठ  अमर  वरदान,
दस जनपथ कैलाश से, सिब-बल अंतरध्यान |
इतना  रुपया  किसने  दिया ? 
 
फुदक-फुदक के खुब किया, मारे कई सियार,
सोचा था खुश होयगा, जन - जंगल सरदार |
जिन्हें लाभ वे कहाँ ??


साम्यवाद के स्वप्न को, दिया बीच से चीर,
बिगड़ी घडी बनाय दी, पर बिगड़ी तदबीर  |
परमाणु समझौता 


अर्गल गर गल जाय तो, खुलते बन्द कपाट,
जब मालिक विपरीत हो, भले काम पर डांट |
हम तो डूबे, तम्हें भी ---

दुनिया  बड़ी  कठोर है , एक  मुलायम  आप,
परहित के  बदले  मिला,  दुर्वासा  सा  शाप |
मुलायम सा कोई नहीं 
 
खट    मुर्गा   मरता  रहे,  अंडा  खा   सरदार,
पांच साल कर भांगड़ा, जय-जय जय सरकार |
Mulayam Singh Yadav






11 comments:

  1. Bahut Sundar likha hai aapne ...
    dekhan me chote lagein, ghav karein gambheer.

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  2. आज फ़िर छा गये हो गुरु। बहुत ही अच्छे शब्द।

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  3. व्यर्थ सिंह मरने गया, झूठ अमर वरदान,
    दस जनपथ कैलाश से, सिब-बल अंतरध्यान |
    रविकर जी आपकी रचनात्मक ऊर्जा इसी तरह सलामत रहे .बहुत सुन्दर समायोजन दोहावली में राजनीति के प्रदूषण पर्व का .बधाई !

    राजनीति में प्रदूषण पर्व है ये पर्युषण पर्व नहीं .

    कबीरा खडा़ बाज़ार में

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  4. हाँ...हाँ...हाँ....मजे दार व्यंग और वह भी सच्ची ! बधाई !

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  5. आपके तीन-चार ब्लाग एक साथ देख डाले। गहरी अनुभूति के साथ रची गई रचनाओं में व्यंग्य की जो मार है काफी असरकारक है ।

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  6. दिनेश जी , मुग्ध करती हैं आपकी रचनाएँ।

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  7. बहुत बढ़िया!
    रविकर जी आपका जवाब नहीं!

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  8. बहुत बहुत सही.....

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