खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।
भूखे-प्यासे मौत, उठा दुनिया से दाना ।
रहे दुबारा न्यौत, बने फिर मुर्दाखाना ॥
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नंदी को देता बचा, शिव-तांडव विकराल ।
भक्ति-भृत्य खाए गए, महाकाल के गाल ।
महाकाल के गाल, महाजन गाल बजाते ।
राजनीति का खेल, आपदा रहे भुनाते ।
आहत राहत बीच, चाल चल जाते गन्दी ।
हे शिव कैसा नृत्य, बचे क्यूँ नेता नंदी ॥
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तप्त-तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।
ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।
ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।
अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।
कर घन-घोर गुहार, पार करवाती नैया ।
तनमन जाय अघाय, काम रत तप्त-तलैया ।
तक=देखकर
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अत्युत्तम!
ReplyDeleteसभी कुण्डलिया बहुत बढ़िया है।
छप्पय छंद और अलंकारों का कौशल सराहनीय है !
ReplyDeleteसॉरी ,
ReplyDeleteआपके अनुप्रास के प्रभाव में कुंडलिया की जगह छप्पय लिख गई!
बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसभी कुण्डलियाँ प्रभावी .... त्रासदी को हूबहू बयाँ करती ...
ReplyDeleteसटीक कुंडलियाँ !!
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल गुरुवार (27-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteकाश की राजनीति करने वाले आम मददगार इंसान की तरह केदारनाथ जाकर कुछ खुद मदद समझ पाते की आम जन का दुःख दर्द क्या होता है ....
ReplyDeleteसार्थक मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
त्रासदी पर सार्थक कुण्डलियाँ
ReplyDeletelatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
सर, बहुत ही सामयिक व मर्मस्पर्शी कुण्डलियाँ लिखीं है आपने ..
ReplyDeleteउत्कृष्ट संजीदा और सामयिक कुण्डलियाँ .बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteवाह क्या सटीक बातें कही हैं आपने, मज़ा आगया पढ़कर।
ReplyDeleteबेहद प्रभाव शाली रचना...आभार
क्या कहने हैं अभिव्यक्ति के बिम्ब के .अर्थ और भाव के सब कुछ के सार के .
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