मिलियन घपले से डिगी, कहाँ कभी सरकार ।
दंगे दुर्घटना हुवे, अति-आतंकी मार ।
अति-आतंकी मार, ख़ुदकुशी कर्जा कारण ।
मँहगाई भुखमरी, आज तक नहीं निवारण ।
काला भ्रष्टाचार, जमा धन बाहर बिलियन ।
मुर्दा मुद्दा जिया, हिलाता देश तमिलियन ॥
पहलवान हो गधा, बाप अब कहे सियासत -
बेचारा रविकर फँसा, इक टिप्पण आतंक ।
जैसे बैठा सिर मुड़ा, ओले पड़ते-लंक ।
ओले पड़ते-लंक, करुण कर गया हिमाकत ।
पहलवान हो गधा, बाप अब कहे सियासत।
बेनी जाती टूट, किंवारा खुलता सारा ।
दिखता पर्दा टाट, हुआ चारा बे-चारा ।
सही बात है, इस तमिलियन ने भी सही मौक़ा ताड़ा है। गुप्त समझौता हो जाने पर पुन समर्थन बहाल कर देंगे। किन्तु सवाल वही देश हितों का क्या ?
ReplyDeleteसटीक !!
ReplyDeleteआभार !!
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteतीखे-तीर !
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
अपने-अपने दाँव!
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