Tuesday, 24 September 2013

सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद-

टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |

पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |

रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |

5 comments:

  1. चुनावी मौसम में ऐसा ही होता है

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  2. पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
    ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |

    बहुत खूब .

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना
    सादर मदन

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  4. सुन्दर प्रस्तुति !!

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