टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
बहुत ही सुन्दर रचना ,अकल क्यों हो गई तुम्हारी मंदा
ReplyDeleteबेटी नहीं है गले का फंदा
अकल के अपने ताले खोलो
जय जय जय बेटी बोलो
सुँदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (14-09-2013) को "यशोदा मैया है मेरी हिँदी" (चर्चा मंचः अंक-1368)... पर भी होगा!
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मार्मिक
ReplyDeleteसंवेदनशील ... पूर्ण रूप से समाज कभी जागेगा भी ...
ReplyDelete