Wednesday, 11 September 2013

किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी -

झूठी कहते ना थको, व्यर्थ बको अविराम ।
याद करो उस शाम को, जब थे लोग तमाम । 

जब थे लोग तमाम, वहाँ बक्कुर नहिं फूटा ।
फूटी किस्मत हाय,  तभी दिल रविकर टूटा ।

रही मुहब्बत पाक, किन्तु मैं तुझ से रूठी ।
किया कलेजा चाक,  आज कहते हो झूठी ॥



7 comments:

  1. रही मुहब्बत पाक, किन्तु मैं तुझ से रूठी ।
    किया कलेजा चाक, आज कहते हो झूठी ॥
    .... वाह सर ... क्या कुण्डलिया कही है .. अति सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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