कुण्डलियाँ-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
दोहे-
झेले जिसने जुल्म-अति, उसकी ले के जान |
मना रहे दीवालियाँ, कुछ अहमक इंसान |
अबला तो संकेत है, जो महिला कमजोर ।
ना लक्ष्मी की ओर यह, ना दुर्गा की ओर । ।
वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteमनमानी लोगों को भाति है लेकिन उसके अंजाम कई बार भयानक भी होते हैं. पुलिस अंजाम भुगतने के बाद आती है. कोर्ट उसे और ज्यादा भुगतवाता है.
ReplyDeleteबलात्कारी पुलिस और अदालत किसी की नहीं सुनते. अपनी जान की हिफाज़त खुद कर सको तो कर लो.
महिलाओं को आजादी के नाम पे गुमराह कर के उनका शोषण करने का ही एक तरीका है |यदि यह माहिलाओं द्वारा मांगी आजादी होती तो वोह दहेज़ से छुटकारा मांगती, पिता की जायदाद में से उतना हक मांगती जितना भाई को मिलता है | शादी के बाद पिता का घर ना छोड़ने की शर्त रखती इत्यादि |