Tuesday 10 September 2013
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला-
जब रूपसि-रंगत नैन लखे तब रंग जमे मितवा मतवाला |
चढ़ जाय नशा उतरे न कभी अब भूल गया मनुवा मधुशाला |
मृगया करने नृप जाय कहाँ मृगया खुद षोडश ने कर डाला |
नवनीत चखी चुपचाप सखी फिर छोड़ गई वह सुन्दर बाला ||
1 comment:
अज़ीज़ जौनपुरी
11 September 2013 at 00:57
बहुत सुन्दर सर जी
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बहुत सुन्दर सर जी
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