आश्रम हित आ श्रम करें, कर ले रविकर धर्म |
जब जमीर जग जाय तो, छोड़ अनीति कुकर्म |
छोड़ अनीति कुकर्म, नर्म व्यवहार करेंगे |
देंगे प्रवचन मस्त, भक्त की पीर हरेंगे |
किन्तु मढ़ैया एक, दिखाने खातिर आक्रम |
बनवा दूँगा दूर, सदाचारी जो आश्रम ||
बहुत सुन्दर लिखा है !!
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