गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दुहरे मगर, व्यवहारिक भरपूर |
व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |
करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जस तस ढलती |
करता अब फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||
उत्तम कुण्डलिया
ReplyDeletelatest post नसीहत
इस मनर में अक्सर डाल गलने में देर ही लगती है ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
सुन्दर आदरणीय !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.... खूब....
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