Sunday, 8 September 2013

प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -

पर मेरी प्रस्तुति 

माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।

सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से । 
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से । 

देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता । 
प्रेम बुद्धि बल पाय,  नहीं जीवन भरमाता ||


6 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  2. मित्रों।
    तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! केवल साइबर कैफे में जाकर मेल चेक किये।
    --
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (09-09-2013) को हमारी गुज़ारिश :चर्चा मंच 1363 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. श्रेष्ठ प्रस्तुति हर मायने में।

    प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
    "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव"अंक - 35
    पर मेरी प्रस्तुति

    माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
    सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।

    सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
    सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।

    देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
    प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??

    ReplyDelete
  4. माँ श्रृष्टि की निर्माता है ... सुन्दर दोहे ...

    ReplyDelete
  5. सुंदर प्रस्तुती..

    ReplyDelete