पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, नहीं जीवन भरमाता ||
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर !
ReplyDeleteमित्रों।
ReplyDeleteतीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! केवल साइबर कैफे में जाकर मेल चेक किये।
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आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (09-09-2013) को हमारी गुज़ारिश :चर्चा मंच 1363 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्रेष्ठ प्रस्तुति हर मायने में।
ReplyDeleteप्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता -
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव"अंक - 35
पर मेरी प्रस्तुति
माता निर्माता निपुण, गुणवंती निष्काम ।
सृजन-कार्य कर्तव्य सम, सदा काम से काम ।
सदा काम से काम, पिंड को रक्त दुग्ध से ।
सींचे सुबहो-शाम, देवता दिखे मुग्ध से ।
देती दोष मिटाय, सकल जग शीश नवाता ।
प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर क्यूँ माता ??
माँ श्रृष्टि की निर्माता है ... सुन्दर दोहे ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुती..
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