Friday, 8 February 2013

भारतीय लोक-तंत्र


*सराजाम सारा जमा, रही सुरसुरा ^सारि |
सुधा-सुरा चौसर जमा, जाम सुरासुर डारि |



जाम सुरासुर डारि, खेलते दे दे गारी |
पौ-बारह चिल्लाय, जीत के बारी बारी |
जो सत्ता हथियाय, सुधा पी देखे मुजरा  |
 जन-गण जाये हार, दूसरा मद में पसरा ।।
*सामग्री  ^चौपड़ की गोटी 


1 comment:

  1. सुन्दर कटाक्ष ,"कविता पर है रविकर भारी,चाहे दे दो जीतनी गारी,मोजरा तो मेहमान हो गया ,नहीं दिख रहे पगड़ी धारी....इक्के तांगे सब पर भारी

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