अब-तक
दशरथ
की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज ने आत्म-हत्या करली । पालन-पोषण
गुरु -मरुधन्व के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ । कौशल्या का जन्म
हुआ-कौसल राज के यहाँ -
रावण ने वरदान प्राप्त किये-कौशल्या को मारने की कोशिश-दशरथ द्वारा प्रतिकार-दशरथ कौशल्या विवाह-रावण के क्षत्रपों का अयोध्या में उत्पात
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सर्ग-2
भाग-1
कौशल्या भयभीत हो, ताके सम्बल एक ।
पावे रक्षक भ्रूण का, फैले शत्रु अनेक ||
पावे रक्षक भ्रूण का, फैले शत्रु अनेक ||
चारों दिशा उदास हैं, फैला है आतंक |
जिम्मेदारी कौन ले, मारे दुश्मन डंक ||
जिम्मेदारी कौन ले, मारे दुश्मन डंक ||
सारे देवी-देवता, चिंतित रही मनाय |
अनमयस्क फिरती रहे, बैठे मन्दिर जाय ||
जीवमातृका वन्दना, माता के सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, रखती रही संभाल ||
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
माता करिए तो कृपा, करूँ तोर अभिषेक |
शत्रु दृष्टि से ले बचा, बच्चा पाऊं नेक ||
संध्या को रनिवास में, रानी रह-रह रोय |
उच्छवासें भरती रही, अँसुवन धरती धोय ||
दशरथ को दरबार में, हुई घरी भर देर |
कौशल्या नहिं दीखती, अन्दर घुप्प-अंधेर ||
तभी सुबकने की पड़ी, कानों में आवाज |
दासी पर होते कुपित, पूँछ रहे महराज ||
हुआ उजाला कक्ष में, मुखड़ा लिए मलीन |
रानी लेटी भूमि पर, दिखती अति-गमगीन ||
राजा विह्वल हो गए, संग भूमि पर बैठ |
रानी को पुचकारते, सत्य प्रेम की पैठ ||
बोलो रानी बेधड़क, खोलो मन के राज |
कौन रुलाया है तुम्हें, करे कौन नाराज ??
निकले अगर भड़ास तो, बढती जीवन-साँस ।
आँसू बह जाएँ अगर, घटे दर्द एहसास ।।
निकले अगर भड़ास तो, बढती जीवन-साँस ।
आँसू बह जाएँ अगर, घटे दर्द एहसास ।।
मद्धिम स्वर फिर फूटता, हिचकी होती तेज |
अपने बच्चे को भला, कैसे रखूं सहेज ||
राजा सुनकर हर्ष से, रानी को लिपटाय |
बोले चिंता मत करो, करूं सटीक उपाय ||
अगली प्रात: वे गए, गुरु वशिष्ठ के पास |
थे सुमंत भी साथ में, जिन पर अति-विश्वास ||
ठोस योजना बन गई, दुश्मन धोखा खाय ||
रानी के इस गर्भ को, जग से रखें छुपाय ||
अगले दिन दरबार में, आया इक सन्देश |
कौशल्या की मातु को, पीड़ा स्वास्थ-कलेस ||
डोली सजकर हो गई, कौला भी तैयार |
छद्म वेश में सेविका, बैठी अति-हुशियार ||
वक्षस्थल पर झूलता, वही पुराना हार |
जिसको लेकर था भगा, सुग्गासुर अय्यार ||
सेना के सँग हो विदा, डोली चलती जाय |
गिद्धराज ऊपर उड़े, पंखों को फैलाय ||
अभिमंत्रित कर महल को, कौशल्या के पास |
कड़ी सुरक्षा में रखा, दास-दासियाँ ख़ास ||
खर-दूषण के गुप्तचर, छोड़े अपनी खोह |
डोली के पीछे लगे, लेने को तब टोह ||
छद्म-वेश में माइके, धर कौशल्या रूप |
रानी हित दासी करे, अभिनय सहज अनूप ||
वर्षा-ऋतु फिर आ गई, सरयू बड़ी अथाह |
दासी उत्तर में रही, दक्षिण में उत्साह ||
देख सकें औलाद को, हुई बलवती चाह |
दशरथ सबपर रख रहे, चौकस कड़ी निगाह ||
सात मास बीते मगर, गोद-भराई भूल |
कनक महल रक्षित रहा, रानी के अनुकूल ||
पड़ा पर्व नवरात्रि का, सकल नगर उल्लास |
कौशल्या नहिं कर सकी, पर अबकी उपवास ||
रानी आँगन में जमी, काया रही भिगोय |
शरद पूर्णिमा हो चुकी, अमाँ अँधेरी होय ।।
शरद पूर्णिमा हो चुकी, अमाँ अँधेरी होय ।।
हर्षित होता अत्यधिक, कुटिया में जब दीप ।
विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।
माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग हरषाय ।।
कुंडलियाँ
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा केहरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।
किरीट सवैया ( S I I X 8 )
हर्षित होता अत्यधिक, कुटिया में जब दीप ।
विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।
माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग हरषाय ।।
किरीट सवैया ( S I I X 8 )
झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ घर-बाहर ।
दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।
दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।
नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव हे शिव-शंकर ।।
धीरे धीरे सर्दियाँ , रही धरा को घेर |
शीत लहर चलने लगी, यादें रही उकेर ||
पीड़ा झूठे प्रसव की, होंठ रखे वो भींच |
रानी सिसकारी भरे, जान सके नहिं नींच ||
रानी हर दिन टहलती, करती नित व्यायाम |
पौष्टिक भोजन खाय के, करे तनिक आराम ||
कोसलपुर में उस तरफ, दासी का वह खेल |
खर-दूषण का गुप्तचर, रहा व्यर्थ ही झेल ||
शुक्ल फाल्गुन पंचमी, मद्धिम बहे बयार |
सूर्यदेव सिर पर जमे, ईश्वर का आभार ||
पुत्री आई महल में, कौशल्या की गोद |
राज्य ख़ुशी से झूमता, छाये मंगल-मोद ||
एक पाख के बाद में, खबर पाय दश-शीस |
खर दूषण को डांटता, सुग्गा सुर पर रीस ||
कन्या के इस जन्म से, रावण पाता चैन |
डपटा क्षत्रपगणों को, निकसे तीखे बैन ||
छठियारी में सब जमे, पावें सभी इनाम |
स्वर्ण हार पाए वहां, दासी का शुभ काम ||
गिद्धराज गिद्धौर को, कर दशरथ का काम |
सम्पाती से जा मिले, करते शोध तमाम ||
नई-नई दूरबीन से, देख सकें अति दूर |
प्रक्षेपित कर यान को, भेजें देश सुदूर ||
गिद्धराज गिद्धौर को, कर दशरथ का काम |
सम्पाती से जा मिले, करते शोध तमाम ||
नई-नई दूरबीन से, देख सकें अति दूर |
प्रक्षेपित कर यान को, भेजें देश सुदूर ||
मालिश करने के लिए, पहुंची कौला धाय |
छूते ही इक पैर को, सुता रही अकुलाय ||
कौशल्या ने वैद्य को, झटपट लिया बुलाय |
जांच परख समुचित करे, रहा किन्तु सकुचाय ||
एक पैर में दोष है, कन्या होय अपंग |
सुनकर अप्रिय वचन यह, हो कौशल्या दंग ||
लिंक -
दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
निवेदन :
आदरणीय ! आदरेया !! आपकी सलाह का स्वागत है- |
बेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्य सौन्दौर्य
ReplyDeleteLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteभावों से आच्छादित .धाराप्रवाह सुन्दर और ,मार्मिक
ReplyDeleteप्रस्तुति
Thanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!
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