अब-तक
दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज ने आत्म-हत्या करली । पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ । कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -
रावण ने वरदान प्राप्त किये-कौशल्या को मारने की कोशिश-दशरथ द्वारा प्रतिकार-दशरथ कौशल्या विवाह-रावण के क्षत्रपों का अयोध्या में उत्पात
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भाग-6
रावण का गुप्तचर दोहे असफल खर की चेष्टा, हो बेहद गमगीन | लंका जाकर के खड़ा, मुखड़ा दुखी मलीन || रावण बरबस पूछता, क्यूँ हो बन्धु उदास | कौशल्या के गर्भ का, करके सत्यानाश || खर पूछे आश्वस्त हो, भ्रात कहो समझाय | यह घटना कैसे हुई, जियरा तनिक जुड़ाय || रानी रथ से कूदती, चोट खाय भरपूर | तीन माह का भ्रूण भी, हो जाता खुद चूर || सज्जन खुशियाँ बांटते, दुर्जन कष्ट बढ़ाय । दुर्जन मरके खुश करे, सज्जन जाय रूलाय । खर के सँग फिर गुप्तचर, भेजा सागर पार | वह सुग्गासुर जा जमा, शुक थे जहाँ अपार || हरकारे वापस इधर, आये दशरथ पास | घटना सुनकर हो गया, सारा अवध उदास || विकट मार्मिक कष्टकर, सुना सकल दृष्टांत । असहनीय दुष्कर लगे, होता चित्त अशांत । गुरुकुल में शावक मरा, हिरनी आई याद | अनजाने घायल हुई, चखा दर्द का स्वाद || आहों से कैसे भरे, मन के गहरे जख्म । मरहम-पट्टी समय के, जख्म करेंगे ख़त्म ।। अनुमति पाय वशिष्ठ की, तुरत गए ससुरार | कौशल्या को देखते, नैना छलके प्यार || सूरज ने संक्रान्ति से, दिए किरण उपहार | कटु-ठिठुरन थमने लगी, चमक उठा संसार || दवा-दुआ से हो गई, रानी जल्दी ठीक | दशरथ के सत्संग से, घटना भूल अनीक || कुण्डली आपाधापी जिंदगी, फुर्सत भी बेचैन। बेचैनी में ख़ास है, अपनेपन के सैन । अपनेपन के सैन, बैन प्रियतम के प्यारे । अपनों के उपहार, खोलकर अगर निहारे । पा खुशियों का कोष, ख़ुशी तन-मन में व्यापी । नई ऊर्जा पाय, करे फिर आपाधापी ।। विदा मांग कर आ गए, राजा-रानी साथ | चिंतित परजा झूमती, होकर पुन: सनाथ || धीरे धीरे सरकती, छोटी होती रात | हवा बसंती बह रही, जल्दी होय प्रभात | दिग-दिगंत बौराया | मादक बसंत आया || तोते सदा पुकारे | मैना मन दुत्कारे || काली कोयल कूके | लोग होलिका फूंके || सरसों पीली फूली | शीत बची मामूली || भौरां मद्धिम गाये | तितली मन बहलाए || भाग्य हमारे जागे | गर्म वस्त्र सब त्यागे || पीली सरसों फूलती, हरे खेत के बीच | कृषक निराई कर रहे, रहे खेत कुछ सींच || पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात | गेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |। तरह तरह की जिंदगी, पक्षी कीट पतंग | जीव प्रफुल्लित विचरते, नए सीखते ढंग || कौशल्या रहती मगन, वन-उपवन में घूम || धीरे धीरे भूलती, गम पुष्पों को चूम || कुण्डली खिलें बगीचे में सदा, भान्ति भान्ति के रंग । पुष्प-पत्र-फल मंजरी, तितली भ्रमर पतंग । तितली भ्रमर पतंग, बागवाँ सारे न्यारे । दुनिया होती दंग, आय के दशरथ द्वारे । नित्य पौध नव रोप, हाथ से हरदिन सींचे । कठिन परिश्रम होय, तभी तो खिलें बगीचे ।। कुण्डली घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम । कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम । पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ । रहे नोचते *पाम, काइयाँ पापी लीचड़ । भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे ।। श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे । (*किनारी की छोर पर लगी गोटी) |
दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
निवेदन :
आदरणीय ! आदरेया !! आपकी सलाह का स्वागत है- |
बहुत ही भाव पूर्ण प्रस्तुति,गुरुकुल में शावक मरा, हिरनी आई याद |
ReplyDeleteअनजाने घायल हुई, चखा दर्द का स्वाद ||
आहों से कैसे भरे, मन के गहरे जख्म ।
मरहम-पट्टी समय के, जख्म करेंगे ख़त्म ।।
अनुमति पाय वशिष्ठ की, तुरत गए ससुरार |
कौशल्या को देखते, नैना छलके प्यार ||
पौधे भी संवाद में, रत रहते दिन रात |
ReplyDeleteगेहूं जौ मिलते गले, खटखटात जड़ जात |।
प्रकृति के सुंदर चित्र...बहुत सुंदर कथा क्रम..
भगवती शांता को नमन ...
ReplyDeleteआपको साधुवाद !
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।---क्या बात है ...साधुवाद ...
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