Sunday 27 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3

सर्ग-1
भाग-3
कौशल्या-दशरथ  
कुंडली  
 दुख की घड़ियाँ सब गिनें, घड़ी-घड़ी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चाक गतिमान, मिलाये सुख की कड़ियाँ ।
मान ईश का खेल, बिता ले दुख की घड़ियाँ ।। 



क्रियाकर्म विधिवत हुआ, तेरह-दिन का शोक ।
आसमान शिशु ताकता, खाली महल बिलोक ||13||  

आँसू  बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|

पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
 विकट समय में पालती, माता सम अविराम ||15||
 
 महामंत्री सुमंत को, गुरू बुलावें पास |
लालन-पालन की करें, वही व्यवस्था ख़ास ||16||

महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
 गुरु-आज्ञा से ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||

जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
बढ़े पुष्टता दुग्ध से, भ्रातृ-भाव पैगाम ||18||

 कामधेनु की कृपा से, होती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, थी आश्रम की नूर ||19||
 
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||20||

राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
 दुर्घटना से अति-दुखी, राजा-रानी सर्व ||21||

अवधपुरी आने लगे, प्राय: कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती जनता नाज ||22||


राजकुमारी वर्षिणी, रानी भी हो संग ।  
 करते सब कोशिश सफल, भरे अवध नवरंग ।23। 

धीरे-धीरे बीतता, दुख से बोझिल काल |
राजकुँवर भूले व्यथा, बीत गया वह साल |24|

दूध नंदिनी का पिया, अन्नप्राशनी-पर्व |
आश्रम से वापस हुए, आनंदित हों सर्व |25|

ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान |26|

उत्तर कोशल झूमता, नव कन्या मुसकाय |
पिता बने भूपति पुन:, फूले नहीं समाय |27|

  बच्चों को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर |28|

कन्या कौशल्या हुई,  दशरथ राजकुमार  |  
 नामकरण उत्सव हुवे,  धरते गुण अनुसार |29।

विधिवत शिक्षा के लिए, फिर से राजकुमार |
कुछ वर्षों के बाद ही, गए गुरू-आगार |30|

अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान|
दसों दिशा रथ  हाँकले, बने अवध की शान |31|

शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय |32|  



राजतिलक विधिवत हुआ, आये कौशल-राज |
राजकुमारी साथ में, हर्षित सकल समाज |33| 

बचपन का वो खेलना,  छीना झपटी स्वाँग   |
इक दूजे को स्वयं से, मन ही मन लें माँग ।34।

दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 


निवेदन : 

आदरणीय ! आदरेया  !!

मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।

अपार कृपा होगी ।। 
आपने सहयोग दिया-आभार आदरणीय ।।
 

10 comments:

  1. कन्या कौशल्या हुई, दशरथ राजकुमार |
    नामकरण उत्सव हुवे, धरते गुण अनुसार |

    बहुत सुंदर कथा क्रम..पहले कभी नहीं पढ़ा..आभार !

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  2. बहुत सुन्दर राम कथा रविकर जी : बधाई
    New post तुम ही हो दामिनी।

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  3. राम कथा का बहुत ही सुन्दर चित्रण,आभार आपका ।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .

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  5. घडी नहीं घड़ी-घड़ी ,अन्नप्रासन ,दसों दिशा...,कौशल राज ,

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    1. बहुत बहुत आभार
      वीरू-भाई |
      कर दिया संशोधन ||

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  6. दुःख की घड़ियाँ सब गिनें=गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ = 14 मात्रा,
    समय-चक्र गतिमान=10 मात्रा,
    (घड़ियाँ का तुकांत बढ़िया त्रुटिपूर्ण)
    आंसू बहते = आँसू बहते
    महामंत्री थे सुमंत=पदांत में लघु गुरु आना चाहिये
    दुग्ध पौष्टिक बाँटती= 12 मात्रा
    दुःख से बोझिल काल=12 मात्रा
    राजकुंवर = राजकुँवर
    पिताश्री भूपति बने= 12 मात्रा
    हांकले= हाँकले
    राजकुमारी साथ मे= राजकुमारी साथ में
    सादर..........

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    1. बहुत बहुत आभार-
      आदरणीय अरुण भाई |
      सुझाये गए संशोधन कर लिए हैं-

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