सर्ग-1
भाग-3
कौशल्या-दशरथ
कुंडली
दुख की घड़ियाँ सब गिनें, घड़ी-घड़ी सरकाय ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
धीरज हिम्मत बुद्धि बल, भागे तनु विसराय ।
भागे तनु विसराय, अश्रु दिन-रात डुबोते ।
रविकर मन बहलाय, स्वयं को यूँ ना खोते ।
समय-चाक गतिमान, मिलाये सुख की कड़ियाँ ।
मान ईश का खेल, बिता ले दुख की घड़ियाँ ।।
क्रियाकर्म विधिवत हुआ, तेरह-दिन का शोक ।
आसमान शिशु ताकता, खाली महल बिलोक ||13||
आँसू बहते अनवरत, गला गया था बैठ |
राज भवन में थी सदा, अरुंधती की पैठ ||14|
पत्नी पूज्य वशिष्ठ की, सादर उन्हें प्रणाम |
विकट समय में पालती, माता सम अविराम ||15||
महामंत्री सुमंत को, गुरू बुलावें पास |
लालन-पालन की करें, वही व्यवस्था ख़ास ||16||
महागुरू मरुधन्व के, आश्रम में तत्काल |
गुरु-आज्ञा से ले गए, व्याकुल दशरथ बाल ||17||
जहाँ नंदिनी पालती, बाला-बाल तमाम |
बढ़े पुष्टता दुग्ध से, भ्रातृ-भाव पैगाम ||18||
कामधेनु की कृपा से, होती इच्छा पूर |
देवलोक की नंदिनी, थी आश्रम की नूर ||19||
दक्षिण कोशल सरिस था, उत्तर कोशल राज |
सूर्यवंश के ही उधर, थे भूपति महराज ||20||
राजा अज की मित्रता, का उनको था गर्व |
दुर्घटना से अति-दुखी, राजा-रानी सर्व ||21||
अवधपुरी आने लगे, प्राय: कोसलराज |
राज-काज बिधिवत चले, करती जनता नाज ||22||
राजकुमारी वर्षिणी, रानी भी हो संग ।
करते सब कोशिश सफल, भरे अवध नवरंग ।23।
राजकुमारी वर्षिणी, रानी भी हो संग ।
करते सब कोशिश सफल, भरे अवध नवरंग ।23।
धीरे-धीरे बीतता, दुख से बोझिल काल |
राजकुँवर भूले व्यथा, बीत गया वह साल |24|
दूध नंदिनी का पिया, अन्नप्राशनी-पर्व |
आश्रम से वापस हुए, आनंदित हों सर्व |25|
ठुमुक-ठुमुक कर भागते, छोड़-छाड़ पकवान |
दूध नंदिनी का पियें, आता रोज विहान |26|
उत्तर कोशल झूमता, नव कन्या मुसकाय |
पिता बने भूपति पुन:, फूले नहीं समाय |27|
बच्चों को लेकर करें, अवध पुरी की सैर |
राजा-रानी नियम से, लेने आते खैर |28|
कन्या कौशल्या हुई, दशरथ राजकुमार |
नामकरण उत्सव हुवे, धरते गुण अनुसार |29।
नामकरण उत्सव हुवे, धरते गुण अनुसार |29।
विधिवत शिक्षा के लिए, फिर से राजकुमार |
कुछ वर्षों के बाद ही, गए गुरू-आगार |30|
अच्छे योद्धा बन गए, महाकुशल बलवान|
दसों दिशा रथ हाँकले, बने अवध की शान |31|
शब्द-भेद संधान से, गुरु ने किया अजेय |
अवधपुरी उन्नत रहे, बना एक ही ध्येय |32|
राजतिलक विधिवत हुआ, आये कौशल-राज |
राजकुमारी साथ में, हर्षित सकल समाज |33|
राजकुमारी साथ में, हर्षित सकल समाज |33|
बचपन का वो खेलना, छीना झपटी स्वाँग |
इक दूजे को स्वयं से, मन ही मन लें माँग ।34।
दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर
निवेदन :
आदरणीय ! आदरेया !!
मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।
अपार कृपा होगी ।।
आपने सहयोग दिया-आभार आदरणीय ।।
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कन्या कौशल्या हुई, दशरथ राजकुमार |
ReplyDeleteनामकरण उत्सव हुवे, धरते गुण अनुसार |
बहुत सुंदर कथा क्रम..पहले कभी नहीं पढ़ा..आभार !
बहुत सुन्दर राम कथा रविकर जी : बधाई
ReplyDeleteNew post तुम ही हो दामिनी।
सभी दोहे बहुत सुन्दर हैं!
ReplyDeleteराम कथा का बहुत ही सुन्दर चित्रण,आभार आपका ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .
ReplyDeleteघडी नहीं घड़ी-घड़ी ,अन्नप्रासन ,दसों दिशा...,कौशल राज ,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteवीरू-भाई |
कर दिया संशोधन ||
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ReplyDeleteदुःख की घड़ियाँ सब गिनें=गिनों कुछ दुःख की घड़ियाँ = 14 मात्रा,
ReplyDeleteसमय-चक्र गतिमान=10 मात्रा,
(घड़ियाँ का तुकांत बढ़िया त्रुटिपूर्ण)
आंसू बहते = आँसू बहते
महामंत्री थे सुमंत=पदांत में लघु गुरु आना चाहिये
दुग्ध पौष्टिक बाँटती= 12 मात्रा
दुःख से बोझिल काल=12 मात्रा
राजकुंवर = राजकुँवर
पिताश्री भूपति बने= 12 मात्रा
हांकले= हाँकले
राजकुमारी साथ मे= राजकुमारी साथ में
सादर..........
बहुत बहुत आभार-
Deleteआदरणीय अरुण भाई |
सुझाये गए संशोधन कर लिए हैं-