Wednesday, 30 January 2013

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-4

अब-तक 
दशरथ की अप्सरा-माँ स्वर्ग गई दुखी पिता-अज  ने आत्म-हत्या करली ।
पालन-पोषण गुरु -मरुधन्व  के आश्रम में नंदिनी का दूध पीकर हुआ ।।
कौशल्या का जन्म हुआ-कौसल राज के यहाँ -

लिंक -

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -1
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -2
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -3


भाग-4

रावण, कौशल्या और दशरथ

दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|

 शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट  |
 फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |

युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||
 
  
भण्डारी ने भक्त पर, कर दी कृपा अपार |
मिली शक्तियों से हुवे,  पैदा किन्तु विकार ||

पाकर शिव-वरदान वो, पहुँचा ब्रह्मा पास |
श्रद्धा से की वन्दना, की पावन अरदास ||

ब्रह्मा ने परपौत्र को, दिए विकट वरदान |
ब्रह्मास्त्र भी सौंपते, अस्त्र-शस्त्र की शान ||

शस्त्र-शास्त्र का हो धनी, ताकत से भरपूर |
मांग अमरता का रहा, वर जब रावन क्रूर ||6||

ऐसा तो संभव नहीं, मन की गाँठे खोल |
मृत्यु सभी की है अटल, परम-पिता के बोल ||7||

कौशल्या का शुभ लगन, हो दशरथ के साथ |
दिव्य-शक्तिशाली सुवन,  काटेगा दस-माथ ||8||

 क्रोधित रावण काँपता, थर-थर बदन अपार |
प्राप्त अमरता 
मैं करूँ, कौशल्या को मार ||9||

चेताती  मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
झेलोगे कैसे भला, जीवन
भर संताप ||10||

रावण के  निश्चर विकट,  पहुँचे  सरयू तीर |
कौशल्या का अपहरण, करके शिथिल शरीर ||11||

बंद पेटिका में किया, देते जल में डाल |
आखेटक दशरथ निकट, सुनते शब्द-बवाल  ||12||

राक्षस-गण से 
जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
 भागे निश्चर हारकर,  नृप कूदे जल-धार ||13||

आगे बहती पेटिका, पीछे भूपति वीर |
शब्द भेद से था पता, अन्दर एक शरीर ||14||

बहते बहते पेटिका, गंगा जी में जाय |
जख्मी दशरथ को इधर, रहा दर्द अकुलाय ||15||

रक्तस्राव था हो रहा, भूपति थककर चूर |
पड़ी जटायू  की नजर,  करे मदद भरपूर  ||16||

 दशरथ मूर्छित हो गए, घायल फूट शरीर |
पत्र-पुष्प-जड़-छाल से, हरे जटायू  पीर ||17||

भूपति आये होश में, असर किया संलेप |
गिद्धराज के सामने, कथा कही संक्षेप ||18||

कहा जटायू ने उठो, बैठो मुझपर आय |
पहुँचाउंगा शीघ्र ही, राजन उधर उड़ाय ||19||

बहुत दूर तक ढूँढ़ते, पहुँचे सागर पास |
पाय पेटिका खोलते, हुई बलवती आस ||20||

कौशल्या बेहोश थी, मद्धिम पड़ती साँस |
नारायण जपते दिखे, नारद जी आकाश ||21||

बड़े जतन करने पड़े, हुई तनिक चैतन्य |
सम्मुख प्रियजन पाय के, राजकुमारी धन्य ||22||

नारद जी भवितव्य का, रखते  पूरा ध्यान ।
दोनों को उपदेश दे,  दूर करें अज्ञान ।|

नारद विधिवत कर रहे, सब वैवाहिक रीत |
दशरथ को ऐसे मिली, कौशल्या मनमीत ||

नव-दम्पति को ले उड़े,  गिद्धराज खुश होंय |
नारद जी चलते बने, भावी  कड़ी पिरोय ||

अवधपुरी सुन्दर सजी, आये कोशलराज |
दोहराए फिर से गए, सब वैवाहिक काज ||

दिनेश चन्द्र गुप्ता ,रविकर 

निवेदन :
आदरणीय ! आदरेया  !!
मात्राओं को सुधारने में सहयोग करें ।
अपार कृपा होगी ।।

आपने सहयोग दिया-आभार आदरणीय ।।

9 comments:

  1. दुर्धुश भट-बलवान=
    लेकिन था अनजान!

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  2. हारे राक्षस भागते,=
    हारे निशिचर भागकर!

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    1. आभार गुरु जी-
      अब शायद ठीक है-

      दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
      पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|

      चेताती मंदोदरी, नारी हत्या पाप |
      झेलोगे कैसे भला, जीवन भर संताप ||10||

      राक्षस-गण से जा भिड़े, चले तीर-तलवार |
      भागे निश्चर हारकर, नृप कूदे जल-धार ||13||

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  3. बहुत रोचक कथा प्रसंग..

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  4. वाह सर जी,बहुत ही सुन्दर और लय बद्ध प्रस्तुति ,बड़ा ही पुनीत कार्य आप के हाथो किया जा रहा है ,जन मानस
    को आकर्षित करने वाली प्रस्तुति

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  5. चेहरे पर मुस्कान=12,
    पाकर शिव-वरदान वो, पहुंचा ब्रह्मा पास=पाकर शिव-वरदान वह,पहुँचा ब्रह्मा पास,
    प्राप्त अमरता करूँ मैं=प्राप्त अमरता मैं करूँ ,
    क्रोधित रावण कांपता=क्रोधित रावण काँपता
    दशरथ मुर्छित हो गए=दशरथ मूर्छित हो गए
    प्राकृतिक उपचार कर=12,
    मन की गांठें खोल =मन की गाँठें खोल

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    1. आभार-
      कर लिया है संशोधन -
      सादर

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  6. Sir Ji, b-khoobi shabo ko piroya hai,bhavo se acchadit

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