दीदी दुनिया दग्ध-मन, दर-दर दम्भी-दुष्ट |
दकियानूसी दखल दे, दे *दंदारू कुष्ट | दे *दंदारू कुष्ट, अपाहिज दुनिया आधी | करे स्वार्थ की पुष्टि, स्वयंभू बनता गाँधी | पौरुष-मद मदहोश, आँख भी रहे उनीदी | नहीं दिखें बेटियां, बहन नहिं माता दीदी || *फफोला |
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
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बराबरी का हक़ सही, सीखा जोड़-घटाव । रविकर आंटे-दाल का, सकल जानती भाव । सकल जानती भाव, चाव-आदत मैं जानूं । जानूं प्रेम-लगाव, समर्पण शुभ सन्मानूं । तज जी का जंजाल, लगे घर-आँगन फीका । चलो करो नौकरी, मिला हक़ बराबरी का ।। |
बहुत सटीक अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteउम्दा !!
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