Tuesday, 15 January 2013

नहीं दिखें बेटियां, बहन नहिं माता दीदी



दीदी दुनिया दग्ध-मन, दर-दर दम्भी-दुष्ट |
दकियानूसी दखल दे, दे *दंदारू कुष्ट |

 दे *दंदारू कुष्ट, अपाहिज दुनिया आधी |
करे स्वार्थ की पुष्टि, स्वयंभू बनता गाँधी |

पौरुष-मद मदहोश, आँख भी रहे उनीदी |
नहीं दिखें बेटियां, बहन नहिं माता दीदी ||

*फफोला 

महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।

दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो

मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।

बराबरी का हक़ सही, सीखा जोड़-घटाव ।
रविकर आंटे-दाल का, सकल जानती भाव ।
सकल जानती भाव, चाव-आदत मैं जानूं ।
जानूं प्रेम-लगाव, समर्पण शुभ सन्मानूं 
तज जी का जंजाल, लगे घर-आँगन फीका 
चलो करो नौकरी, मिला हक़ बराबरी का ।।

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