नोट:अधिकतर कुंडलियाँ / टिप्पणियां मूल लेख के अनुसार हैं-
कथा भागवत की ख़तम, देह देश को दान ।
रखिये अब तलवार भी, खाली खाली म्यान ।
खाली खाली म्यान, आग तन-बदन लगाए ।
गाड़ी यह मॉडर्न, बिना ब्रेक सरपट जाए ।
झटके खाए सोच, चाल है दकियानूसी ।
अपनी रक्षा स्वयं, करो मत काना-फूसी ।।
मोमेंटम में तन-बदन, पश्चिम का आवेग ।
सोच रखी पर ताख पर, काट रही कटु तेग ।
काट रही कटु तेग, पुरातन-वादी भारत ।
रहा अभी भी रेंग, रेस नित खुद से हारत ।
ब्रह्मचर्य का ढोंग, आस्था का रख टम-टम ।
पश्चिम का आवेग, सोच को दे मोमेंटम।
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सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत | बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है | फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है | कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था | मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा || |
लेख लिखाते ढेर से, पढ़िए सहज उपाय ।
रेप केस में सेक्स ही, पूरा बदला जाय । पूरा बदला जाय, भ्रूण हत्या से बचकर । भेदभाव से उबर, करे सर्विस जब पढ़कर । दुर्जन से घबराय, छोड़ दिल्ली जो जाते । भरपाई हो मित्र, रहो फिर लेख लिखाते ।।
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पुत्रों पर दिखला रहीं, माताएं जब लाड़ |
पुत्री पर प्रतिबन्ध क्यों, करती हो खिलवाड़ |
करती हो खिलवाड़, हमें है सोच बदलनी | भेदभाव यह छोड़, पुत्र सम पुत्री करनी | होकर के गंभीर, ध्यान देना है मित्रों | अपनी चाल सुधार, बाप बनना है पुत्रों | |
आशा मिलती राम में, नर नारी संजोग |
आये आसाराम से, जाने कितने लोग | जाने कितने लोग, भोग की गलत व्याख्या | नित आडम्बर ढोंग, बड़ी भारी है संख्या | नारी नहिं गलनीय, नहीं वह मीठ बताशा | सुता सृष्टि माँ बहन, सदा दुनिया की आशा ||
छी छी छी दारुण वचन, दारू पीकर संत ।
बार बार बकवास कर, करते पाप अनंत । करते पाप अनंत, कथा जीवन पर्यन्तम । लक्ष भक्त श्रीमन्त, अनुसरण करते पन्थम । रविकर बोलो भक्त, निगलते कैसे मच्छी । आशा उगले राम, रोज खा कर जो छिच्छी ।। |
जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल ।
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल । दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना । सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना । जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा । चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।।
लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।
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आगे दारुण कष्ट दे, फिर काँपे संसार |
नाबालिग को छोड़ते, जिसका दोष अपार | जिसका दोष अपार, विकट खामी कानूनी | भीषण अत्याचार, करेगा दुष्ट-जुनूनी | लड़-का-नूनी काट, कहीं पावे नहिं भागे | श्रद्धांजली विराट, तख़्त फांसी पर आगे ||
दुनिया भागमभाग में, घायल पड़ा शरीर |
सुने नहीं कोई वहां, करे बड़ी तकरीर | करे बड़ी तकरीर, सोच क्या बदल चुकी है | नहीं बूझते पीर, निगाहें आज झुकी हैं | सामाजिक कर्तव्य, समझना होगा सबको | अरे धूर्तता छोड़, दिखाना है मुँह रब को || |
मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |
फैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश | भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित | लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित | करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी | रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||
आँखों में बेचैनियाँ, काँप दर्द से जाय |
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बीस साल का हाल है, काल बजावे गाल ।
पश्चिम का जंजाल कह, नहीं गलाओ दाल ।
नहीं गलाओ दाल, दाब जब कम हो जाये ।
काली-गोरी दाल, नहीं रविकर पक पाए ।
होवे पेट खराब, नहीं जिम्मा बवाल का ।
खुद से खुद को दाब, तजुर्बा बीस साल का ।।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-1-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
अति सुन्दर !!
ReplyDeleteठीक कह रहे हैं आप -लड़की हो या लड़का -सही संस्कार और नैतिक शिक्षा दोनो के लिये समान रूप से आवश्यक है .
ReplyDeleteअति सुंदर...
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