Saturday 12 January 2013

पश्चिम का जंजाल कह, नहीं गलाओ दाल-



नोट:अधिकतर कुंडलियाँ / टिप्पणियां मूल लेख के अनुसार हैं-
कथा भागवत की ख़तम, देह देश को दान ।
रखिये अब तलवार भी, खाली खाली म्यान ।
खाली खाली म्यान, आग तन-बदन लगाए ।
गाड़ी यह मॉडर्न, बिना ब्रेक सरपट जाए ।
झटके खाए सोच, चाल है दकियानूसी ।
अपनी रक्षा स्वयं, करो मत काना-फूसी ।।
 
मोमेंटम में तन-बदन, पश्चिम का आवेग ।
 सोच रखी पर ताख पर, काट रही कटु तेग ।
काट रही कटु तेग, पुरातन-वादी भारत ।
रहा अभी भी रेंग, रेस नित खुद से हारत ।
ब्रह्मचर्य का ढोंग, आस्था का रख टम-टम ।
पश्चिम का आवेग, सोच को दे मोमेंटम।


सत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत |
बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है |
फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है |
कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था |
मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा ||


लेख लिखाते ढेर से, पढ़िए सहज उपाय ।
रेप केस में सेक्स ही, पूरा बदला जाय ।
पूरा बदला जाय, भ्रूण हत्या से बचकर ।
भेदभाव से उबर, करे सर्विस जब पढ़कर ।
दुर्जन से घबराय, छोड़ दिल्ली जो जाते ।
भरपाई हो मित्र, रहो फिर लेख लिखाते ।।

इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
 शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
कर पाए ना घात,  पड़े भारी इक नारी ।।



पुत्रों पर दिखला रहीं, माताएं जब लाड़ |
पुत्री पर प्रतिबन्ध क्यों, करती हो खिलवाड़ |  

करती हो खिलवाड़, हमें है सोच बदलनी |

भेदभाव यह छोड़, पुत्र सम पुत्री करनी |

होकर के गंभीर, ध्यान देना है मित्रों |  

अपनी चाल सुधार, बाप बनना है पुत्रों |


आशा मिलती राम में, नर नारी संजोग |
आये आसाराम से, जाने कितने लोग |
जाने कितने लोग, भोग की गलत व्याख्या |
नित आडम्बर ढोंग, बड़ी भारी है संख्या |
नारी नहिं गलनीय, नहीं वह मीठ बताशा |
सुता सृष्टि माँ बहन, सदा दुनिया की आशा ||


छी छी छी दारुण वचन, दारू पीकर संत ।
बार बार बकवास कर, करते पाप अनंत ।
करते पाप अनंत, कथा जीवन पर्यन्तम ।
लक्ष भक्त श्रीमन्त, अनुसरण करते पन्थम ।
रविकर बोलो भक्त, निगलते कैसे मच्छी ।
आशा उगले राम, रोज खा कर जो छिच्छी ।।  

जस्टिस वर्मा को मिले, भाँति-भाँति के मेल ।
रेपिस्टों की सजा पर, दी दादी भी ठेल । 
दी दादी भी ठेल, कत्तई मत अजमाना ।
सही सजा है किन्तु, जमाना मारे ताना ।
जो भी औरत मर्द, रेप सम करे अधर्मा । 
चेंज करा के सेक्स, सजा दो जस्टिस वर्मा ।।

लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।
खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।
किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।
पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।
 रेखा चलूं नकार, पुरुष भव खींचा, लक्ष्मण ।


आगे दारुण कष्ट दे, फिर काँपे संसार |
नाबालिग को छोड़ते, जिसका दोष अपार |
जिसका दोष अपार, विकट खामी कानूनी |
भीषण अत्याचार, करेगा दुष्ट-जुनूनी |
लड़-का-नूनी काट, कहीं पावे नहिं भागे |
श्रद्धांजली विराट, तख़्त फांसी पर आगे ||
दुनिया भागमभाग में, घायल पड़ा शरीर |
सुने नहीं कोई वहां, करे बड़ी तकरीर |
करे बड़ी तकरीर, सोच क्या बदल चुकी है |
नहीं बूझते पीर, निगाहें आज झुकी हैं |
सामाजिक कर्तव्य, समझना होगा सबको |
अरे धूर्तता छोड़, दिखाना है मुँह रब को ||

 मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |

फैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश |

  भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित |  

लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित |

 करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी |

रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||


आँखों में बेचैनियाँ, काँप दर्द से जाय |
सांत्वना से आपकी, नहीं रूह विलखाय |
नहीं रूह विलखाय, खाय ली देह हमारी |
लाखों लेख लिखाय, बचे पर अत्याचारी |
है भारत धिक्कार, रेप हों हर दिन लाखों |
मरें बेटियाँ रोज, देखते अपनी आँखों ||

 


बीस साल का हाल है, काल बजावे गाल ।
पश्चिम का जंजाल कह, नहीं गलाओ दाल ।
नहीं गलाओ दाल, दाब जब कम हो जाये ।
काली-गोरी दाल, नहीं रविकर पक पाए ।
होवे पेट खराब, नहीं जिम्मा बवाल का ।
खुद से खुद को दाब, तजुर्बा बीस साल का ।।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-1-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!

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  2. ठीक कह रहे हैं आप -लड़की हो या लड़का -सही संस्कार और नैतिक शिक्षा दोनो के लिये समान रूप से आवश्यक है .

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