परिहास
जली कटी देती सुना, महीने में दो चार ।
तुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार ।
सैंयाँ बारम्बार, तुम्हारे व्रत की माया ।
सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया ।
रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे ।
कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।।
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सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ सजनी से लड़ जायँ ,कहे हैं जली रोटियाँ आलू का बस झोल , कहाँ हैं तली बोटियाँ जब सजनी गुर्राय ,लपक कर पड़ते पइयाँ मजे लूटकर आयँ , इंगलिश बार से सइयाँ ||
2.
हँसके काटो चार दिन,मत दिखलाओ तैश
बाकी के छब्बीस दिन , होगी प्यारे
ऐश
होगी प्यारे ऐश , दुखों का प्रतिशत कम है
सात जनम का साथ ,रास्ता बड़ा विषम है
पाओगे सुख-धाम ,उन्हीं जुल्फों में फँस के
मत दिखलाओ तैश,चार दिन काटो हँसके ||
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सारा यह झूठा प्रपंच, फैलाई अफवाह ।
रविकर हनुमत भक्त है, चलता सीधी राह ।
चलता सीधी राह, किया मंदिर में दर्शन ।
खाया तनिक प्रसाद, घेर लेते कुछ दुर्जन ।
ठेला ठेली करें, गले पे चाक़ू धारा।
कपड़ों पर ढरकाय, तमाशा करते सारा ।।
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दीदी-बहना पञ्च हैं, मसला लाया खींच |
हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच | नीची नजरें मींच, मगर बुदबुदा रहा है | उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है | दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते | कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते || |
वो भी बोली
क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।
उनकी क्या मुहताज हूँ, काहे रहूँ भुखाय ।
काहे रहूँ भुखाय, बनाते बढ़िया खाना ।
टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।
कब से करवा चौथ, नहीं रखते पति मेरे ।
मारे गर अवकाश, यहाँ होटल बहुतेरे ।।
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कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल- |
आभारी है पति-जगत, व्रती-नारि उपकार ।
नतमस्तक हम आज हैं, स्वीकारो उपहार ।।
(महिमा )
नारीवादी हस्तियाँ, होती क्यूँ नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके सदा समाज ||
मर्द कमाए लाख पण, करे प्रबंधन-काज | घर लागे नारी बिना, डूबा हुआ जहाज || |
(शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा, कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे, सदा बढ़े शुभ प्यार ||
करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की, महिमा अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ, लागूँ राज- कुमार ||
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली चाल ||
करवाल=तलवार
करवा संग करवालिका, बनी बालिका वीर |
शक्ति पाय दुर्गा बनी, मनुवा होय अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?
शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें, बेगम सदा सशंक ||
लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश |
चौथी से ही चल रहा, अब क्या लेना चांस ??
आनन्द दायक
ReplyDeleteआपकी कुंडलियां
ReplyDeleteज्यों रसभरी जलेबियां।
बहुत सुन्दर और शानदार काव्यमय टिप्पणियाँ!
ReplyDeleteएक बात और भी-
पति तो बहुत मिल जायेंगे मगर नौकरी मिलना दुर्लभ है।
इस लिए पति की लम्बी उमर माँने का क्या लाभ!
आनंद दायक रोचक कुंडलियाँ....
ReplyDeletewaah ...waah ....majedar prastuti...
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