Sunday, 20 May 2012

हत्या से भली भ्रूण हत्या-

कुंडली 
लकड़ी कमने लग पड़ी, चिंतातुर इंसान |
बकड़ा-बकड़ी पर सदा, चाबें अंकुर-*नान ||
*नन्हीं
चाबें अंकुर-नान, तर्क भी देते घटिया |
दोगे घर में फूंक, बेंच दोगे जा *हटिया |
*बाजार
बनमाली को त्रास, व्यर्थ क्यूँ देना प्यारे |
खाकर करता मुक्त, काम आ गए  हमारे ||


आखिर जलना अटल, बचा क्यूँ रखे लकड़ियाँ -

Young girl sitting on a log in the forest
जलें लकड़ियाँ लोहड़ी, होली बारम्बार ।
जले रसोईं में कहीं, कहीं घटे व्यभिचार ।

कहीं घटे व्यभिचार, शीत-भर जले अलावा ।
भोगे अत्याचार,  जिन्दगी विकट छलावा ।

रविकर अंकुर नवल, कबाड़े पौध कबड़िया ।
आखिर जलना अटल, बचा क्यूँ रखे लकड़ियाँ ।।
Lohri
लकड़ी काटे चीर दे, लक्कड़-हारा रोज ।
लकड़ी भी खोजत-फिरत, व्याकुल अंतिम भोज ।
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/f/f9/Sati_ceremony.jpg

14 comments:

  1. चित्र के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  2. सच कहूं तो इस समय देश की ही ग्रह दशा ही खराब है। हर जगह गंदगी और बेईमानी का का बोलबाला है। लगता है कि सच्चाई और ईमानदारी आज कल किसी हिल स्टेशन पर बैठकर देश में हो रहे तमाशे को देख रही हैं।

    Nice post.

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  3. बहुत सुन्दर ...
    लकड़ी के माध्यम से आपने बहुत कुछ कहा

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  4. नारी का आजन्म से ता -मृत्यु तक क्रमिक शोषण दोहन दिखाती रचना .पोषण करना भूल रहा है समाज अपने ही लहू का .सृष्टि की नियंता नियामक अन्नपूर्णा का .
    बदलाव के लिए अस्त्र उठाती है यह रचना .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    सोमवार, 21 मई 2012
    यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    तेरी आँखों की रिचाओं को पढ़ा है -
    उसने ,
    यकीन कर ,न कर .

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  5. रचना के संदेश बहुत महत्वपूर्ण हैं।

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  6. आभार आप सभी का |
    विषय स्पष्ट हो पाया -
    रचना सफल हुई ||

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  7. लकड़ी के माध्यम से बहुत पते की बात कही है ...बधाई अच्छी कुण्डलियाँ

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  8. बहुत सुन्दर.......

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  9. आति सुन्दर...

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  10. बहुत बढिया लकड़ी को माध्यम बना बहुत कुछ कहती रचना

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  11. वाह लकडी, आह लकडी ।

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