अमलताश की पीलिमा, गुलमोहर के फूल ।
कोयल-मन भायें नहीं, अमराई को भूल ।
अमराई को भूल, भूल ना खुश्बू पाए ।
मस्ती गई बिलाय, भला अब कैसे गाये ।
कुहुक-कुहू जब बोल, चिढा देता था बच्चा ।
बैठ आम की डाल, सुनाती गायन सच्चा ।।
कौआ खुद को समझता, था बेहद चालाक ।
काम निकाले मजे से, कोयल मौका ताक ।
कोयल मौका ताक, आजकल दुखी बिचारी ।
कौवे होंय हलाक, मौत अब भी है जारी ।
कौन बनाए नीड़, पेट से कोयल भारू ।
होय प्रसव की पीर, हाय अब किसे पुकारूं ।।
कोयल और कौए की कहानी..सदियों पुरानी...फिर भी लागे नई!...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ! कोयल और कौवे की कहानी सुंदर चित्रों के साथ....
ReplyDeleteकोयल मौका ताक, आजकल दुखी बिचारी ।
ReplyDeleteकौवे होंय हलाक, मौत अब भी है जारी ।
आपकी पारखी दृष्टि सब कुछ देख रही है कौवे ही नहीं हैं नीड़
का निर्माण अब न हो सकेगा .कोयल को ही घोंसला बनाना पडेगा .पर्यावरण पर इतनी पैनी नजर आपकी .सलाम आपको आपकी विज्ञता को .
सत्य है कोयल कौवे के घोंसले में बच्चा देती है .नर कक्कू कौवे को लड़ाई में उलझाके दूर ले जाता है मादा अंडे देके चलती बनती है साथ ही उड़ा के ले जाती है अपनी चौंच में दबाके कौवी का एक अंडा ताकि कौवी को शक न हो .दोनों के अंडे हमशक्ल होतें हैं .प्रसव के बाद का यही पहला मील होता है कोयल का वैसे कोयल (कक्कू )शाकाहारी होती है लेकिन यह सामिष आहार उस वक्त की ज़रुरत बन जाता है .एनर्जी फ़ूड बन जाता है .नेताओं की माँ होती है कोयल चालाकी में.
ReplyDeleteओह-
Deleteमजेदार -
कौवा बार बार बना बेवकूफ |
अपने आप को चालाक समझने वालों का यही हश्र होता है -
आभार ||
आज ही दैनिक भास्कर में वीणा नागपाल जी का एक लेख पढ़ा इसी सन्दर्भ में......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रविकर जी.
सादर.
कोयल और कौवे का यह संबंध बना रहेगा...
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