भ्रूण भ्रान्तवश भंगकर, भटके भट भकुवान ।
पुत्र-मोहवश पापधी, बूढ़ भये अकुलान ।
घर से मार-भगाए बेटे ।
बहना आगे आय समेटे ।
छोट छोट शहरों में पैदा, बड़े बड़े शैतान ।।
कुंडली
उदासीनता भ्राँतता, भटक रहे जो पैर ।
अवलोकन कर ले पुन:, करे खुदाई खैर।
करे खुदाई खैर, बने जाते वैरागी ।
अपनों को कर गैर, बरे नफरत की आगी ।
दर्द हार गम रोग, व्यथा छल आंसू हाँसी ।
जीवन के सब तत्व, जियो फिर छोड़ उदासी ।।
bilkul sahi kha g agar sab esko samghe
ReplyDeleteशैतान शहर या गाँव में होता है शैतान
ReplyDeleteशभ्य जनों की शीलता देती उसको पहचान -
सुन्दर रचना .....बधाईयाँ जी /
घर से मार-भगाए बेटे ।
ReplyDeleteबहना आगे आय समेटे ।
.....सार्थक संदेश देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
सत्य वचन !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteभ्रूण ह्त्या पर करारा व्यंग्य .बढ़िया शानदार कुंडली रविकर जी की .
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