अपने मुंह मिट्ठू बनें, मियाँ ढपोरी-शंख ।
करे निखट्टू कोशिशें, काट *बया के पंख ।
*गौरैया जैसा एक चतुर पक्षी
काट *बया के पंख, खाय नामर्द कलेजी ।
मिले सैकड़ों भक्त, लानतें "धिम्मी" भेजी ।
खड़ा करे संगठन, खरे नहिं देता टपने ।
दिखें सभी में ऐब, धुनेगा खुद सिर अपने ।
|
2014
ग्यारह पाती आप है, राजग पाए तीस ।
सत्ता को चौंतिस मिले, बाम आदि सब बीस ।
बाम आदि सब बीस, खरे बन्दे हैं बाइस ।
राष्ट्रवाद बत्तीस, शेष उन्मादी साइस ।
सेक्युलर जाए जीत, होंय उसके पौ बारह ।
एक एक से लड़ें, टूट राजग में ग्यारह ।।
|
ReplyDeleteअपने मुंह मिट्ठू बनें, मियाँ ढपोरी-शंख ।
करे निखट्टू कोशिशें, काट *बया के पंख ।
*गौरैया जैसा एक चतुर पक्षी
काट *बया के पंख, खाय नामर्द कलेजी ।
मिले सैकड़ों भक्त, लानतें "धिम्मी" भेजी ।
खड़ा करे संगठन, खरे नहिं देता टपने ।
दिखें सभी में ऐब, धुनेगा खुद सिर अपने ।
अगली बंदिश का नक् गणित भी गुल खिला सकता है कुंडली तो बेहद मीठी बन पड़ी है बधाई इस गेयता के लिए अर्थ सारता के लिए .