सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
नकारात्मक छोड़िये, रखिये मन में धीर |
रखिये मन में धीर, जलधि-मन मंथन करके | देह नहीं जल जाय, मिले घट अमृत भरके | करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा | हो जग का कल्याण, सही सिद्धांत सकारा || |
कातिल क्या तिल तिल मरे, तमतमाय तुल जाय ।
हँस हठात हत्या करे, रहे ऐंठ बल खाय ।
रहे ऐंठ बल खाय, नहीं अफ़सोस तनिक है ।
कहीं अगर पकड़ाय, डाक्टर लिखता सिक है ।
मिले जमानत ठीक, नहीं तो अन्दर हिल मिल ।
खा विरयानी मटन, मौज में पूरा कातिल ।।
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बहुत सुंदर और सटीक कुण्डलियाँ...
ReplyDeleteजय हो....:-)
ReplyDelete'जलधि-मन मंथन करके....'
ReplyDelete--- मंथन का अर्थ है सकारात्मक--नकारात्मक--गुणात्मक सभी पहलुओं पर गौर करना....
कभी नहीं हो पीर, वो कैसे पीर को जाने,
जाने बिन, बेपीर , पीर कैसे सनमाने |
हर पहलू तू जान, नकारा या साकारा ,
पीर जगत की जान,जग का प्यारा हो तभी ||
छोटी सी है जिन्दगी, करते क्यों अभिमान।
ReplyDeleteसुख-दुख दोनों में रहो, प्रतिपल एक समान।।
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अमृत भी है सिन्धु में, क्यों करते विषपान।
मानव हो मानव रहों, बनो न देव महान।।
बहुत सुंदर और सटीक- मिले जमानत ठीक, नहीं तो अन्दर हिल मिल ।
ReplyDeleteखा विरयानी मटन, मौज में पूरा कातिल ।।
परहित सरस धर्म नहीं भाय ,बार बार कहे रविकर कवि राय
ReplyDeleteकरलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा
सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
नकारात्मक छोड़िये, रखिये मन में धीर |
रखिये मन में धीर, जलधि-मन मंथन करके |
देह नहीं जल जाय, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो जग का कल्याण, सही सिद्धांत सकारा ||
बहुत अच्छा है रविकर जी ,तभी तो विष की कड़ुआहट आपके लिये सिर्फ़ खारेपन तक सीमित रही.
ReplyDeleteRAVIKAR JI, BAHUT SUNDAR KUNDALIYA...."KAR LE HM VISHPAN AJ,BAN JAYE BHOLE SHIV SHANKAR,,,,DUNIYA KI PIDA KO HAR LE,SHIV KO FIR DHARTI PAR LA DE...
ReplyDeleteDEEPAWALI KI HARDIK SHUBHKAMNAYE