चीखा चावल चना ज्यों, चीखा जोर लगाय |
पत्नी घबराई नहीं, खड़ी खड़ी मुसकाय |
खड़ी खड़ी मुसकाय, कहे है ना डिश धांसू |
रहा दर्द से रोय, दिखें नहिं रविकर आंसू |
दीदा दो दो लिए, किन्तु कंकड़ नहिं दीखा |
दे बत्तीसी तोड़, कहे यूँ क्योंकर चीखा ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
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(¯*•๑۩۞۩:♥♥ :|| गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) की हार्दिक शुभकामनायें || ♥♥ :۩۞۩๑•*¯)
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वाह! बहुत सुंदर...
ReplyDeleteअलंकार युक्त बहुत सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteलालित्यम
ReplyDeleteपत्नी का पल्ला
http://lambikavitayen5.blogspot.in/
व्यंगकार का खुब चले, कहते लोग दिमाग |
प्लाट ढूँढ़ ना पा रहा, चला गया या भाग |
चला गया या भाग, फैसला कर लो पहले |
घरे बोलती बंद, पड़े नहले पे दहले |
दहले मोर करेज, यहाँ तो मन की बक लूँ |
कंकड़ लेता निगल, कहाँ फिर जाकर उगलूं ??
सुंदर प्रस्तुति | दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति ....दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
ReplyDeleteआनुप्रासिक छटा बिखेरती अप्रतिम रचना रविकर भाई की .आभार हमें चर्चा में लाने के लिए .
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteदीदा दो दो लिए, किन्तु कंकड़ नहिं दीखा |
ReplyDeleteदे बत्तीसी तोड़, कहे यूँ क्योंकर चीखा ||
सरजी !क्या बात !क्या बात !क्या बात !
चर्चा मंच में बिठाने के लिए आभार ,नेहा ,प्यार ,
ReplyDeleteरूप तेरा साकार ,लेता एक आकार ,
कुंडली तेरी जय जय .