Saturday 17 November 2012

बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक-250वीं पोस्ट इस ब्लॉग पर

  "चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक -२०

 

 http://www.openbooksonline.com/


पानी जैसा धन बहा, मरते डूब कपूत ।
हुई कहावत बेतुकी, और आग मत मूत ।

और आग मत मूत, हिदायत गाँठ बाँध इक ।
बदल कहावत आज, खर्च पानी धन माफिक ।

कह रविकर कविराय, सिखाई दादी नानी ।
बन जा पानीदार, सुरक्षित रखना पानी ।।



 विधाता (शुद्धगा) छंद. (यगण + गुरु)x 4

घमंडी का सदा नीचा हुआ है सर सभी जानें ।
अकारथ ही बहा पानी हमारे घर गुशल-खाने ।
संभालो अब अगर अब भी हिदायत यह नहीं माने ।
मरोगे सब करोगे क्या अगर वर्षा उलट ठाने ।

 विष्णुपद छंद 
(अभ्यास किया है ) 

द्वि-चरणों के चिन्ह, पादोदक, भक्त  हटे पा के ।
प्रतियोगिता भिन्न, मनमोहक, चित्र छापा ला के ।
आदरणीय नमन, महोत्सव,  कहाँ छुपे जा के ।
आभारी रविकर, विष्णुपद, सिखा गए आ के ।।

 



 

1 comment: