Sunday 26 June 2011

रिश्ते सहज बनेंगे, लगा लेप मरहम के |

   (मेरी-टिप्पणी ब्लाग  पर ) आत्‍म-चिंतन
इक पहाड़ सा लगने लगता उन रिश्तों का बोझ |
धीर-धीरे  रहे  बिगड़ते,  रहे  नहीं  जब  *सोझ ||         *सरल 


जिसकी बुद्धि जितनी पैनी, उस पर उतना  भार |
करे जरुरी  चिंतन  दिल से,  सारे  बोझ  उतार ||

असहज भावों पर रविकर, वो करें नियंत्रण जमके | 
फिर से रिश्ते सहज बनेंगे, लगा लेप मरहम के ||

रिश्तों   की   पूंजी  बड़ी , हर-पल संयम *वर्त |     *व्यवहार कर  
पूर्ण-वृत्त   पेटक  रहे ,  असली  सुख   *संवर्त ||     *इकठ्ठा
*                   *               *            *              




1 comment:

  1. यानि छंदों की पूरी नदी बहाई जा रही है। चलिए छंदों में आप लिख रहे हैं। अच्छा ही है। हम तो छंदमुक्त और युक्त दोनों हैं।

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