(मेरी-टिप्पणी ब्लाग पर ) आत्म-चिंतन
धीर-धीरे रहे बिगड़ते, रहे नहीं जब *सोझ || *सरल
जिसकी बुद्धि जितनी पैनी, उस पर उतना भार |
करे जरुरी चिंतन दिल से, सारे बोझ उतार ||
असहज भावों पर रविकर, वो करें नियंत्रण जमके |
फिर से रिश्ते सहज बनेंगे, लगा लेप मरहम के ||
रिश्तों की पूंजी बड़ी , हर-पल संयम *वर्त | *व्यवहार कर
पूर्ण-वृत्त पेटक रहे , असली सुख *संवर्त || *इकठ्ठा
* * * *
यानि छंदों की पूरी नदी बहाई जा रही है। चलिए छंदों में आप लिख रहे हैं। अच्छा ही है। हम तो छंदमुक्त और युक्त दोनों हैं।
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