(1)
एक बार फिर से शकुनी * ने धर्मराज* की गोटी पीटी ||
फिर चौसर की इस बिसात पर मामा अपने कपट खेल से-
सम्मान छीन वनवास भेजता दु:शासन के हेल-मेल से ||
एक बार फिर से धोखे से वरनावत का महल जलाया
एक बार फिर से कौरव ने अत्याचारी बिगुल बजाया ||
एक बार फिर से दु:शासन*, दुर्योधन* उन्मत्त हुआ है |
एक बार फिर से विराट की गौवों का अपहरण हुआ है ||
धृतराष्ट्र* के पूतों से अब सावधान हो जाओ तो |
इन अंधी दीवारों से मत सिर अपने टकराव तो ||
अपने - अपने हिस्से का अब युद्ध यहाँ लड़ना होगा
सह चुके बहुत कह चुके बहुत अब करना या मरना होगा
तुम दूर खड़े मत देखो अब, यह चक्रव्यूह हम तोड़ेंगे |
कंधे से कन्धा जोड़-जोड़ मनका मनका अब जोड़ेंगे ||
(2)
रणभेरी बज चुकी हाथ को जड़ से हमी उखाड़ेंगे |
अपने - अपने हिस्से का अब युद्ध यहाँ लड़ना होगा
सह चुके बहुत कह चुके बहुत अब करना या मरना होगा
तुम दूर खड़े मत देखो अब, यह चक्रव्यूह हम तोड़ेंगे |
कंधे से कन्धा जोड़-जोड़ मनका मनका अब जोड़ेंगे ||
(2)
भीषण भीम गर्जना पर कानों में रुई घुसा लेना |
न रात-पहर का सपना ये, चुटकी तू काट, कटा लेना ||
जिन हाथों से अनसन-कर्ता पर है तूने छापा डाला
जिस काले हृदय से करता सत्ता के संग मुंह काला ||
रणभेरी बज चुकी हाथ को जड़ से हमी उखाड़ेंगे |
स्वेद-रक्त पीने को तेरी छाती काली फाड़ेंगे ||
सारी सत्ता सारा वैभव भोग-विलासी जीवन पर |
थू-थू सारी जनता करती चुल्लू भर पानी में मर ||
सुई नोक भर भूमि न दूंगा कौरव सारे अकड़ पड़े |
मांग हमारी जायज है, मैदान में कहते कृष्ण खड़े ||
चक्र सुदर्शन चमक उठा,ऐ संभल गुरु द्रोही संभाल |
अंतिम चेतावनी चेत, जनता बन आती महाकाल ||
सारी सत्ता सारा वैभव भोग-विलासी जीवन पर |
थू-थू सारी जनता करती चुल्लू भर पानी में मर ||
सुई नोक भर भूमि न दूंगा कौरव सारे अकड़ पड़े |
मांग हमारी जायज है, मैदान में कहते कृष्ण खड़े ||
चक्र सुदर्शन चमक उठा,ऐ संभल गुरु द्रोही संभाल |
अंतिम चेतावनी चेत, जनता बन आती महाकाल ||
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