गुज़र से गए दर्दो-एहसास सारे, तुम्हारे सहारे |
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे ||
उड़ा न सके राख,
दिल के जले की,
बवंडर नकारे |
न आया सदी सेकोई ज्वार-भांटा
समंदर किनारे |
हारे को ' रविकर'
कि जीता वही
जो सिकंदर पुकारे |
चूँ-चूँ ने चोंचों से
चुन-चुन के फेंके,
जो जलते अंगारे |
धड़कने लगा दिल,
न हिम्मत ये हारे
न तुमको बिसारे ||
गुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे |
गुज़र से गए दर्दो-एहसास सारे, तुम्हारे सहारे | |
* * * * * * *
गुज़र से गए दर्दो-एहसास सारे, तुम्हारे सहारे | |
* * * * * * *
अपने आशिक की मैंने
इक तश्वीर बनाई है ||
जरा टेढ़ी-मेढ़ी आई है |
पहली में पगड़ी दिखाई है |
दूजी में लुंगी पहनाई है |
तीजी की ड्रेस काली है |
चौथी भोली-भाली हैं --
कुआरें-पन की लाली है |
अगला एक सवाली है ||
जिसका भेजा खाली है ||
एक तस्वीर में चंदा है
तो दूसरी में बिहारी बन्दा है ||
पर तू है कौन ----
ये तो बता --
मैं---
मैं हूँ देश की सत्ता ||
बेहतरीन रचना, वाह।
ReplyDeleteगुजरने लगे रात-दिन फिर हमारे, तुम्हारे सहारे
ReplyDeletebeautiful poem
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ReplyDeleteरविकर जी प्यारी रचना -निम्न सुन्दर सन्देश
ReplyDeleteहारे को ' रविकर'
कि जीता वही
जो सिकंदर पुकारे |
ये आशिकों का बुरा हाल तो ही ही जाता है आशिकी निभाना कोई ऐरे गिरे नत्थू खैरे के बस की बात नहीं -बेबाक
कुआरें-पन की लाली है |
अगला एक सवाली है ||
जिसका भेजा खाली है ||
शुक्ल भ्रमर ५
लीजिए नागरी में कहने आ गया। अब कल वाली बात जो रोमन में है हटा देता हूँ।
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