सामने समर्थ जो, खखोरना व्यर्थ तो |
जो शक्तिहीन हो, दुखी हो दींन हो ||
केवल उस पर भारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||
वृद्ध हो, बाल हों, नारियां बेहाल हों |
गर बड़ी वीर है, धीर-व-गंभीर है-
जोर का जोश है, भीड़ पर रोष है-
बड़ा मर्दजात है, और औकात है -
दिल्ली की पुलिस सुन, सर्विस झारखण्ड चुन-
वृद्ध हो, बाल हों, नारियां बेहाल हों |
पब्लिक निर्दोष थी, बिल्कुल मद्होश थी
नींद से ग्रस्त थी, भूख से पस्त थी |
अस्त-व्यस्त भागते, अश्रु-गैस दागते--
करती छापामारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||
गर बड़ी वीर है, धीर-व-गंभीर है-
जोर का जोश है, भीड़ पर रोष है-
बड़ा मर्दजात है, और औकात है -
दिल्ली की पुलिस सुन, सर्विस झारखण्ड चुन-
नक्सल की मुख्तारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||
आभार
ReplyDeleteमन का आक्रोश है बाहर आ गया
वृद्ध हो, बाल हों, नारियां बेहाल हों |
ReplyDeleteपब्लिक निर्दोष थी, बिल्कुल मद्होश थी
नींद से ग्रस्त थी, भूख से पस्त थी |
अस्त-व्यस्त भागते, अश्रु-गैस दागते--
करती छापामारी है, पुलिस नहीं बीमारी है |...
दिनेश जी , काश इस आक्रोश को हमारी संवेदना-विहीन सरकार भी समझ पाती।
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