Tuesday, 7 June 2011

दिल्ली के पुलिस-गन, चलो झारखण्ड वन

सामने समर्थ जो, खखोरना व्यर्थ तो |
जो शक्तिहीन  हो,  दुखी हो दींन  हो  ||
केवल उस पर भारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||

वृद्ध हो, बाल हों,  नारियां बेहाल हों |
पब्लिक निर्दोष थी, बिल्कुल मद्होश थी 
नींद से ग्रस्त थी, भूख से पस्त  थी |
अस्त-व्यस्त भागते, अश्रु-गैस दागते--
करती छापामारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||  

गर  बड़ी  वीर है, धीर-व-गंभीर है- 
जोर का जोश है, भीड़ पर रोष है- 
बड़ा मर्दजात है, और औकात है -  
दिल्ली की  पुलिस सुन, सर्विस झारखण्ड चुन-
नक्सल की मुख्तारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||

2 comments:

  1. आभार
    मन का आक्रोश है बाहर आ गया

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  2. वृद्ध हो, बाल हों, नारियां बेहाल हों |
    पब्लिक निर्दोष थी, बिल्कुल मद्होश थी
    नींद से ग्रस्त थी, भूख से पस्त थी |
    अस्त-व्यस्त भागते, अश्रु-गैस दागते--
    करती छापामारी है, पुलिस नहीं बीमारी है |...

    दिनेश जी , काश इस आक्रोश को हमारी संवेदना-विहीन सरकार भी समझ पाती।

    .

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