Monday, 20 June 2011

जीवन-यात्रा : माताजी की जय

समस्या-पूर्ति  मंच  का  आभार | Theory  पढने के बाद
Practical  कर रहा हूँ -- गुरुजनों का आशीर्वाद चाहिए --

मेरा विषय ही सबसे बड़ी समस्या है | जिसे टाल पाना 
नामुमकिन -- निबटना ही पड़ता है, वो भी तुरंत ||
                      (१) 
रक्त से अपने सींचकर, हड्डी दिहिन गलाय |
माँ के दर्शन सर्वप्रथम, मृत्य-लोक में आय ||

पाली - पोसी  प्राण जस, माता सदा सहाय |
ढाई किलो  का जीव यह, सत्तर का हो जय ||
                  "खुड्डी"
माँ के  पैरों का  बना, सर्वोत्तम  शौचालय |
हाथ लगाए बिन हुआ, माताजी  की जय ||

आँखे टिकने लग पड़ी, पापा को पहचान |
उनके कपड़ों का किया कई बार नुक्सान ||

दीदी   मेरी   ले  गई,  बाहर   रही  घुमाय |
मुश्किल मेरे पेट की, उसे समझ न आय ||

पैंजनिया पैरों पड़ी, ठुमुक-ठुमुक खनकाय |
सारी धरती एक सी, रविकर हमें दिखाय ||
                     
दो ईंटों  को  पास  रख, ऐसा दिया सजाय |
बैठे  उटकुरुवा  वहाँ,  असली  खुड्डी पाय ||
                    "खुद-की"
मामा के घर था गया, छुक-छुक गाडी बैठ |
आपन हाथ लगाय ले, मामी  बोली   ऐंठ ||

लौटत में  फिर हो गया, रविकर पेट ख़राब |
मीठा कम नमकीन जल, पिए बहुत से डाब ||

कई  दिनों  के  बाद  में, रुके  थे  मेरे  दस्त |
करते करते  था  हुआ,  बुरी तरह से पस्त ||
                     
फूफा के घर शहर में, मुश्किल पड़ी अजीब |
आफत में थी जान जब, नाली दिखी करीब ||
                     "टट्टी"
अगले दिन फुफ्फी कही, घर की टट्टी देख |
उधर  कमाने के लिए,   आती  काकी  नेक ||

भरता  कोई  है  इधर , करता  कोई  और |
चार- दिनन के बाद ही, छोड़ चले वो ठौर ||

रिश्तों की  पूंजी  जमा,  मनुआ  धीरे  खर्च | 
एक-एक को ध्यान से, ख़ुशी-ख़ुशी  संवर्त ||
                    "मैदान"
बाबा की आँखे  हुईं, थोड़ी  और ख़राब |
मुझको ड्यूटी दे हटे,  मेरे  भाई -साब ||

सुबह-सुबह उठकर गया, बाबा के संग खेत |
नितक्रिया उस खेत को,  उपजाऊ कर देत ||

अब आदत पड़ने लगी, घर से बाहर जाय |
दुनियादारी ध्यान से,  बाबा  रहे  सिखाय ||

सौ तक की गिनती हुई, ए बी सी  डी याद |
वर्णमाला भी रट लिया, चार माह के बाद ||

गलती लेकिन हो गई, लगा मुझे इक रोज |
बगुली लेकर हाथ में,  रहे  मौलवी  खोज ||
                     
पाँच साल का हो गया,  कपडे लेता डाल |
बैठे-ठाले करे नित, घर  में  नए  बवाल ||

भैया   कक्षा   पाँच  में,   मेरी  कक्षा  एक |
अमरूदों  के  बाग़  में, लिए  गुरूजी  देख ||

हुई  सुतैया बड़न  की, कांप रहे  थे गात |
मुर्गे की लख दुर्दशा , समझा सारी बात ||

देख भयंकर दृश्य ये,  होने लगी मरोड़ |
बड़े-दोस्त के साथ में गए तलौआ दौड़ ||
                   "तालाब"
पर पानी के पास में, ठिठके  मेरे  पैर |
मुर्गे को छुट्टी मिली,  लेने पहुँचा खैर||

भैया बोले बोल  क्या,  बोलेगा घर बात |
शौचा दो पहले मुझे, मेरी क्या औकात ||
                 
एक साल  बीता गए,   भैया   बड़-स्कूल |
अपने पैरों फाँकता , इधर-उधर की धूल ||

स्वावलम्बी मै हो चला, दोस्त बने दो-चार |
खेलों  में  करते  मजा,  बड़ा मस्त व्यवहार ||

एक बार तालाब  में,  फिसला  मेरा  पैर |
मित्र खींच लाया मगर, कुशलपूर्वक तैर ||

बाबा के आशीष  से,  यह बच्चा  हुशियार |
दिन दूनी बढ़ता गया, गुरु-जनों का प्यार || 

मिडिल किया था पास तब, पास नहीं स्कूल |
दूर साइकिल  से  चला,   सीखे  ट्रैफिक रुल ||

दसवी  कक्षा  में  लगा, सेन्टर  काफी  दूर  |
घर से बाहर प्रथमतः ,  रहने को  मजबूर ||
                    "स्वावलंबन"
नहर  नदी  तालाब  में, निपटे  बार हजार |
गए अयोध्या फिर पढ़न, होकर दसवीं पार || 

इन्टर   पढने   के   लिए,   पहुंचे   फैजाबाद |
प्रभु-कृपा  से  हो  गया, गुरु  से  इक  संवाद ||

जीवन का क्या लक्ष्य है, मन में  करो विचार |
छोटी -  छोटी   मंजिलें,   करते  जाओ  पार ||

सपने  खुब  देखो  मगर, रहे  हकीकत  मूल |
उनको  पाने  के  लिए,  करो न लेकिन भूल || 

सुबह-सुबह की क्लास में, हुई एक दिन देर || 
अगले दिन फिर आ गया, जल्दी बड़े सवेर ||

शौचालय  ढूंढा  उधर,  देखा   बड़का   हाल |
अरे ! निबटने के लिए, जी का सब जंजाल ||

लगा समझने में समय, पर सुविधा भरपूर |
काकी को फुरसत मिली,  हुई समस्या दूर ||
 जारी है 

2 comments:

  1. पुरी ज़िंदगी ही उतार रहे हैं इन दोहों में ...

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  2. हाँ दी!
    सोचा कुछ ऐसा ही है |
    जीवन पर अनगिनत महान-आत्माओं के अनगिनत उपकार हैं |
    उन्हें एकबार फिर याद करने का उपक्रम है ये,
    दोहों की रचना सीखना तो एक बहाना मात्र है.
    हाँ, शुरू में लगता था की क्या फ़ालतू विषय
    चुन लिया है पर अब आनन्द आरहा है --
    इसी बहाने छोटी बड़ी घटनाएं याद आ रही हैं |
    कुछ भी बनावटी नहीं --सब कुछ सत्य --एकदम सत्य ||

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