(१)
छत्तीसगढ़ की छोडो कमान |
जा रही पुलिस कर्मियों की जान |
अन्यथा, आज दिल्ली से मांगो
पुलिस-कमिश्नर सह जवान ||
(२)
सुख-दुःख के अनुभव की खातिर
है जीवन जैसे बहुत जरुरी ||
वैसे, "काले-धन" की खातिर --
लेनी चोरों की मन्जूरी ||
(३)
सोनी अपनी सोणी है |
शकल जरा सी रोनी है |
दिल्ली के दंगल पर किन्तु--
आँखे तनिक भिगोनी हैं ||
(४)
राजा हो या रोजी हो, मारन हो या मोझी हो |
कामनवेल्थ या देशी खेल, टू-जी हो या फौजी हो----
लगा रखा था ताला जी, बहुतै बड़ा घुटाला जी --
हुआ देश मतवाला जी, बाबा जँग सँभाला जी ||
सटीक और सार्थक लेखन ...
ReplyDeleteआपके आने से मुझे हार्दिक-प्रसन्नता है |
ReplyDeleteनिवेदन--
छोटी दी !
सुझाव दो-
ताकि
सुधार हो ||
बहुत ही अच्छा लिखा है
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteटिपण्णी स्वरूप इसे स्वीकारें और चंद दोहे निकालें -
ReplyDeleteराजीव गांधी की राजनीति में आत्मघाती गलती क्या था ?खुद को मिस्टर क्लीन घोषित करवाना .इंदिराजी श्यानी थीं उनकी सरकार में चलने वाले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब उनकी राय पूछी गई उन्होंनेझट कहा यह तो एक भूमंडलीय फिनोमिना है .हम इसका अपवाद कैसे हो सकतें हैं .(आशय यही था सरकारें मूलतया होती ही बे -ईमान और भ्रष्ट हैं ).यह वाकया १९८३ का है जिस पर दिल्ली उच्च न्यायालय केएक ईमानदार न्यायाधीश महोदय ने निराशा और हताशा के साथ कहा था वहां क्या हो सकता है भ्रष्टाचार के बिरवे का जहां सरकार की मुखिया ही उसे तर्क सम्मत बतलाये .यही वजह रही इंदिराजी पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा न ही उन्होंने कभी अपने भ्रष्टाचार और इस बाबत निर्दोष होने का दावा किया .ज़ाहिर है वह मानतीं थीं-"काजल की कोठारी में सब कालेही होतें हैं .ऐसा होना नियम है अपवाद नहीं ।
राजीव गांधी खुद को पाक साफ़ आदर्श होने दिखने की महत्व -कांक्षा पाले बैठे थे और इसलिए उन्हें बोफोर्स के निशाने पर लिया गया और १९८९ में उनकी सरकार को खदेड़ दिया गया .जब की इंदिराजी ने खुद को इस बाबत इम्युनाइज़्द ही कर लिया था ,वे आखिर व्यावहारिक राजनीतिग्य थीं ।
राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहतऔर सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .
लेकिन सोनिया जी ने अपने शोहर वाला रास्ता अपनाया है त्यागी महान और ईमानदार दिखने का .लगता है १९८७-१९८९ वाला तमाशा फिर दोहराया जाएगा .हवा का रुख इन दिनों ठीक नहीं है ।आसार भी अच्छे नहीं हैं .अप -शकुनात्मक हैं ।
राजीव गांधी का अनुगामी बनते हुए और इंदिराजी को विस्मृत करते हुए नवम्बर २०१० में एक पार्टी रेली में उन्होंने भ्रष्टाचार के प्रति "जीरो टोलरेंस "का उद्घोष किया ।
चंद हफ़्तों बाद ही उन्होनें अपना यह संकल्प कहो या उदगार दिल्ली के प्लेनरी सेशन में दोहरा दिया .उन्होंने पार्टी काडर का आह्वाहन किया भ्रष्टाचारियों को निशाने पे लो किसीभी दगैल को छोड़ा नहीं जायेगा . दार्शनिक अंदाज़ में यह भी जड़ दिया भ्रष्टाचार विकास के पंख नोंचता है ।
तब से करीब पच्चीस बरस पहले राजीव गांधी ने भी पार्टी के शताब्दी समारोह में मुंबई में ऐसे ही उदगार प्रगट किये थे ।
अलबत्ता दोनों घोषणाओं के वक्त की हालातों में फर्क रहा है ,राजीव जी के खिलाफ तब तक कोई "स्केम ",कोई घोटाला नहीं था .क्लीन ही दीखते थे वह ।
लेकिन सोनिया जी से चस्पा थे -कोमन वेल्थ गेम्स ,टू जी ,आदर्श घोटाले ।
राजीव जी बोफोर्स के निशाने पर आने से पहले बे -दाग ही समझे गए .लेकिन सोनियाजी की राजनीतिक तख्ती पर सिर्फ कात्रोची ही नहीं लिखा है ,क्वाट -रोची स्विस बेंक की ख्याति वाले और भीं अंकित हैं साफ़ और मान्य अक्षरों में ।
मामला इस लिए भी संगीन रुख ले चुका है एक तरफ विख्यात स्विस पत्रिका और दूसरी तरफ एक रूसी खोजी पत्रकार द्वारा गांधी परिवार के सनसनी खेज घोटालों के खुलासे के बाद सोनिया जी के कान पे आज दो दशक बाद भी जूं भी नहीं रेंगीं हैं ,है सूंघ गया सामिग्री सामिग्री है .साहस नहीं हुआ है उनका प्रतिवाद का या मान हानि के बाबत मुक़दमे या और कुछ करने का .
(ज़ारी ...).
सन्दर्भ -सामिग्री:-नवम्बर १९,१९९१ के अंक में स्विटज़र -लेंड कीएक नाम चीन पत्रिका (स्वैज़र इलस -ट्री -एर्टे) ने तीसरी दुनिया के कोई एक दर्ज़नऐसे राज -नीतिज्ञों का पर्दा फास किया जिन्होनें रिश्वत खोरी का पैसा स्विस बेंक में ज़मा करवा रखा था .इनमें कथित मिस्टर क्लीन भी थे .इस नामचीन पत्रिका की कोई २,१५ ,००० प्रतियां प्रति अंक बिक जातीं हैं .पाठक संख्या स्विटज़र -लेंड की कुल वयस्क आबादी का कोई छटा हिस्सा रहता है लगभग ९,१७,००० प्रति अंक ।
के जी बी रिकोर्ड्स के हवाले से बतलाया गया था राजीव की विधवा का यहाँ कोई ढाई अरब फ्रांक (तकरीबन २.२ अरब बिलियन डॉलर्स ) से गुप्त एकाउंट चल रहा है .इनके अल्प -वयस्क पुत्र के नाम से यह खाता ज़ारी था (जो अब कोंग्रेस के राजकुमार हैं )।
बतलाया यह भी गया था यह लेखा अनुमान के मुताबिक़ जून १९८८ से भी पहले से ज़ारी था जब राजीव ने भारी जन समर्थन बटोरा था ।
रुपयों में यह राशि वर्तमान के १०,००० करोड़ आती है .स्विस बेंक में पैसा द्विगुणित होता रहता है ।
लॉन्ग टर्म सिक्युरितीज़ में निवेश करने पर यह २००९ में ही हो जाता ४२,३४५ करोड़ रुपया .अमरीकी स्टोक्स में निवेशित होने पर हो जाता १२.९७ अरब डॉलर (५८ ,३६५ करोड़ रूपये )।
जो हो आज इसगांधी परिवार के खाते की कीमत 4३,००० -८४,००० करोड़ के बीच हो गई है ।
(ज़ारी ...)
सन्दर्भ -सामिग्री :-http://www.iretireearly.com/sonia-gandhi-and-congress-secret-billions-exposed.htm
स्विस बेंक में गांधी परिवार के खातों के बारे में क्या कहतें हैंभारतीय जन -संचार माध्यम ,इंडियन -मीडिया ?
ReplyDeleteराजीव गांधी के दुखद और आकस्मिक अंत पर स्विस और रूसी भंडा फोड़ इन खातों के बाबत थोड़ा आगे खिसक गया .मुलतवी रहा कुछ देर .लेकिन सोनिया गांधी के कोंग्रेस की बागडोर संभालते ही भारतीय जन -संचार माध्यमों की इनमें दिलचस्पी बढ़ गई ।
स्टेट्स -मेन अंग्रेजी रिसाले में इस बाबत ३१ दिसंबर १९८८ को सबसे पहले ए जी नूरानी ने लिखा ।
अप्रेल २९.२००२ :सुब्रामनियम स्वामी जी ने अपनी वेब साईट पर इन खातों के बाबत तमाम सामिग्री ,किताब ,स्विस पत्रिका आदि की फोटो प्रतियां लगा दींजिनमे उस स्विस पत्रिका का ई -मेल (फरवरी २३ ,२००२ )भी शामिल था .पुष्ट हुआ राजीव गांधी का एक गुप्त खाता है जिसमें ढाई अरब स्विस फ्रांक जमा हैं .पत्रिका ने स्वामी को इस पत्रिका की मूल प्रति भी मुहैया करवाने की पेश कर दी ।
अप्रेल २९ ,२००९ को मेंगलोर में बोलते हुए सोनिया गांधी ने कहा ,कोंग्रेस स्विस बेंक में जमा अन -टेक्स्द मनी की समस्या पर गंभीरता से विचार कर रही है ।
इसकी अनुक्रिया स्वामी ने "दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस (अप्रेल २९ ,२००९ )अंक में अपने आरोपों को फिर दोहराते हुए इस शपथ और निश्चय को ही अपने ख़ास निशाने पर लिया .अपने परिवार के खातों का सच वह कैसे सामने लायेंगी ?वही जानें ?
अगस्त १५ , २००६ को स्तम्भ कार राजेन्द्र पुरी ने भी के जी बी द्वारा सामने लाये गए तथ्यों का खुलासा किया ।
हाल में दिसंबर २७ ,२०१० को "इंडिया टुडे "में राम जेठ मलानी ने अपनी कलम चलाते हुए पूछा -कहाँ हैअब वह स्विस बेंक में जमा पैसा .
दिसंबर ७ ,१९९१ को सी पी आई (एम् )के अमल दत्ता ने संसद में इन खातों के बाबत पूछा ,प्रोसीडिंग्स में से तत्कालीन स्पीकर ने गांधी नाम निकाल दिया ।
(ज़ारी ...).
स्विस बेंक में गांधी परिवार के खातों के बारे में क्या कहतें हैंभारतीय जन -संचार माध्यम ,इंडियन -मीडिया ?
ReplyDeleteराजीव गांधी के दुखद और आकस्मिक अंत पर स्विस और रूसी भंडा फोड़ इन खातों के बाबत थोड़ा आगे खिसक गया .मुलतवी रहा कुछ देर .लेकिन सोनिया गांधी के कोंग्रेस की बागडोर संभालते ही भारतीय जन -संचार माध्यमों की इनमें दिलचस्पी बढ़ गई ।
स्टेट्स -मेन अंग्रेजी रिसाले में इस बाबत ३१ दिसंबर १९८८ को सबसे पहले ए जी नूरानी ने लिखा ।
अप्रेल २९.२००२ :सुब्रामनियम स्वामी जी ने अपनी वेब साईट पर इन खातों के बाबत तमाम सामिग्री ,किताब ,स्विस पत्रिका आदि की फोटो प्रतियां लगा दींजिनमे उस स्विस पत्रिका का ई -मेल (फरवरी २३ ,२००२ )भी शामिल था .पुष्ट हुआ राजीव गांधी का एक गुप्त खाता है जिसमें ढाई अरब स्विस फ्रांक जमा हैं .पत्रिका ने स्वामी को इस पत्रिका की मूल प्रति भी मुहैया करवाने की पेश कर दी ।
अप्रेल २९ ,२००९ को मेंगलोर में बोलते हुए सोनिया गांधी ने कहा ,कोंग्रेस स्विस बेंक में जमा अन -टेक्स्द मनी की समस्या पर गंभीरता से विचार कर रही है ।
इसकी अनुक्रिया स्वामी ने "दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस (अप्रेल २९ ,२००९ )अंक में अपने आरोपों को फिर दोहराते हुए इस शपथ और निश्चय को ही अपने ख़ास निशाने पर लिया .अपने परिवार के खातों का सच वह कैसे सामने लायेंगी ?वही जानें ?
अगस्त १५ , २००६ को स्तम्भ कार राजेन्द्र पुरी ने भी के जी बी द्वारा सामने लाये गए तथ्यों का खुलासा किया ।
हाल में दिसंबर २७ ,२०१० को "इंडिया टुडे "में राम जेठ मलानी ने अपनी कलम चलाते हुए पूछा -कहाँ हैअब वह स्विस बेंक में जमा पैसा .
दिसंबर ७ ,१९९१ को सी पी आई (एम् )के अमल दत्ता ने संसद में इन खातों के बाबत पूछा ,प्रोसीडिंग्स में से तत्कालीन स्पीकर ने गांधी नाम निकाल दिया ।
(ज़ारी ...).
हाँ पढ़ा है इसे |
ReplyDeleteअंतर्मन में प्रविष्टि हो चुकी है इसकी
अवश्य ही कुछ सार्थक बनेगा ||
बैंक में ज़मा खातों के बारे में जून १९८८ के बाद से आदिनांक चुप्पी साधे रखकर खुद ही सोनिया और अब बालिग़ हो चुके पुस्विसत्र ने अपने खिलाफ सबूत जुटाया .वो कहतें हैं न मौन का मतलब स्वीकृति ही तो होता है .हालाकि स्विस पत्रिका और भारतीय जन संचार माध्यमों ने भी उन्हें सवालों के सलीब पर टांगें रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।
ReplyDeleteलेकिन हमेशा एक चुप सौ को नहीं हराता .सौ संदेहों को पोषित और पल्लवित ज़रूर कर देता है .जब पत्रिका ने कहा ,राजीव को रिश्वत में मिला पैसा सोनिया ने राहुल के नाम से ज़मा करवाए रखा तब दोनों ने न तो कोई प्रति -वाद किया और न पत्रिका पर मान हानि का मुकदमा दायर किया ।
न ही ए जी नूरानी और स्टेट्स -मेन अखबार के खिलाफ अपनी जुबां खोली ,जब उन्होनें ये तमाम आरोप १९९८ में दोहराए ।
सुब्रामनियम स्वामी ने तो तमाम आरोपों को अपनी वेब साईट पर ही परोस दिया था २००२ में और जब इन आरोपों का समर्थन एक्सप्रेस ने किया तब भी कोई कुछ नहीं बोला ।
एक बार फिर नाम चीन अंग्रेजी के रिसाले हिन्दू और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने राजीव गांधी को रूसी खुफिया संस्था के जी बी द्वारा किये गए भुगतानों के बाबत१९९२ में लिखा .हालाकि रूसी सरकार ने शर्मिंदगी महसूस की.
१९९४ में येव्जेनिया अल्बट्स ने १९९४ में इन्हीं आरोपों को दोहराया ।
अगस्त १५ ,२०० ६ को अपने स्तंभ में राजेन्द्र पुरीसाहब ने भी इस बाबत कलम चलाई .लेकिन साहब होना हवाना क्या था ले देके कुछ फरमा बरदारों ने एक प्रोक्सी सुइट ज़रूर दायर किया .यह तब हुआ जब २००७ में न्यूयोर्क टाइम्स ने अल्बट्स एक्सपोज़ को एक पूरे पृष्ठीय विज्ञापन के रूप में ही छाप दिया .यह विज्ञापन कथित तौर पर सोनिया का असली चेहराअमरीकियों के सामने लाने की नीयत से अनिवासी भारतीयों के सौजन्य से प्रकाशित हुआ था .अमरीकी न्यायालय ने इस सुइट को पहली नजर में ही खारिज कर दिया क्योंकि यह सोनिया जी की तरफ से दायर ही नहीं किया गया था ।
इस सुइट ने भी २.२ अरब डॉलर की रकम राहुल के नाम स्विसबैंक में होने का प्रतिवाद नहीं किया ।
याद कीजिये उस वाकये को जब एक खोजी पत्रकार ने अपनी किताब में मोरारजी भाई देसाई को सी आई ए एजेंट लिख दिया था .मोरार जी आग बबूला हो गए थे .उस वक्त उनकी उम्र ८७ वर्ष थी लेकिन नैतिक बल सदैव जैसा ही था ,उन्होंने किताब के लेखक और पत्रकार सेमूर हर्ष के खिलाफ ५ करोड़ डॉलर का मानहानि का मुकदमा ठोक दिया था ।
जब यह मामला पेशी के लिए आया मोरारजी भाई ९३ बरस के हो गए थे .सात समुन्दर पार की लम्बी थकाऊ यात्रा करने में सर्वथा असमर्थ तब किसिंजर महोदय ने मोराजी भाई की तरफ से पैरवी करते हुए हर्ष की आरोप को गलत बाताते हुए खारिज कर दिया जिसे अकसर यह बान पड़ी हुई थी किसी न किसी को लांछित करते रहना .
मोरारजी भाई की मृत्यु के ५ बरस बाद २००४ में यह खुलासा "दी अमेरिकन स्पेक -टेटर"ने किया कल्पना करो अगर ये सारे आरोप आडवाणी और मोदी के खिलाफ होते तो एन डी टी वी (एंटी इंडिया टी वी )क्या करता ?
और अगर ये आरोप गलत भी होते तो सोनिया गांधी एंड कम्पनी क्या करती ?और एन डी टी वी ?
(ज़ारी ..).
रविकर भाई चाहें तो इसे अतिथि पोस्ट के रूप में किसी भी ब्लॉग पर लगालें .यह जानकारी हर तरफ से जनता तक पहुंचनी चाहिए .आखिर संत परम्परा को अपमानित निम्नीकृत करने वालों की असलियत तो सामने आये ।
ReplyDeleteशुभ काम -नाओं सहित-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).
रवि -कर जी ,आपकी कुशाग्र कुशला बुद्धि ने "सोनिया गांधी एंड कोंग्रेस सीक्रेट बिलियंस "का जिस तरह दोहानुवाद ,भावानुवाद किया है वह अप्रतिम है .आपको शतश :नमन .उम्र दराज़ हो आपकी .
ReplyDeleteभ्रष्टाचार भूमंडलीय फिनोमिना (1983 )
ReplyDeleteमाता के व्यक्तव्य से, बाढ़ा हर दिन लोभ |
भ्रष्टाचारी देव को, चढ़ा रहे नित भोग ||
पानी ढोने का करे, जो बन्दा व्यापार |
मुई प्यास कैसे भला, सकती उसको मार ||
काजल की हो कोठरी, कालिख से बच जाय |
हो कोई अपवाद गर , तो उपाय बतलाय ||
मिस्टर क्लीन
माता के उपदेश को , भूले मिस्टर क्लीन,
राज हमारा बनेगा , भ्रष्टाचार विहीन |
भ्रष्टाचार विहीन, नहीं मैं माँ का बेटा,
सारे दागी लोग , अगरचे नहीं लपेटा |
पर"रविकर"आदर्श, बड़ा वो चले दिखाने |
दागै लागे तोप, उन्हीं पर कई सयाने ||
June 18, 2011 7:03 PM
२०.८० लाख करोड़ रूपये की लूट :भारत को छोड़ कर सभी देश उस रिश्वत और लूट के पैसे को वापस स्वदेश लाना चाहतें .भारत की इसमें कोई रूचि नहीं है (यहाँ भारत का मतलब वर्तमान शासन तंत्र से है जिसने इस मुद्दे पर मौन समाधि ली हुई है )।
ReplyDelete२००९ के संसदीय चुनाव प्रचार के दौरान जब आडवाणी ने कहा हम यदि सत्ता में आये ,स्विस बेंक में ज़मातकरीबन ५०० बिलियन डॉलर -१.२ ट्रिलियन डॉलर की रकम भारत वापस लाइ जायेगी ,कोंग्रेस ने इस धन की मौजूदगी को ही नकार दिया .कहा देश का कोई पैसा स्विस बेंक में जमा नहीं है .मम्मी और उनकी पीपनीमनमोहन ने समवेत स्वर में इससे इनकार किया .
लेकिन जब इस मुद्दे ने तूल पकड़ा दोनों ने अपना स्वर बदला और कहा,हम कोशिश करेंगें ये पैसा वापस आये .
ग्लोबल ब्लेक फंड्स के खिलाफ काम करने वाली एक संस्था है "ग्लोबल फिनेंशियल इन्तेग्रिती "यह एक गैर -लाभकारी संस्था है ,बकौल इस संस्था के फिलवक्त स्विस बेंक में भारत का ४६२ अरब डॉलर ज़मा है .रुपयों में इसकी कीमत हो जाती है तकरीबन २०.८० लाख करोड़ .इसका दो तिहाई उदारीकरण के झंडा बारदारों के नाम है .
इस संस्था के अनुसार १९४८ -२००८ तक भारत को कुल २१३ अरब डॉलर की नुकसानी ऐसी इल्लीगल केपिटल फ्लाईट (इल्लिसित फिनेंशियल फ्लोज़ )के मार्फ़त ही उठानी पड़ी है .कर चोरी ,भ्रष्टाचार ,रिश्वत खोरी और किक्बेक्स अन्य अपराधिक लीलाओं का ही यह नतीज़ा है।
यह बतलाने के लिए किसी संत घोषणा,भविष्य कथन की ज़रुरत नहीं है ,कोंग्रेस नरेश के खाते में जमा २.२ अरब डॉलर की रकम अब बढ़के ९-१३ अरब डॉलर हो गई है .
बतला दें आपको इस लूट राशि में २जी और कोमन वेल्थ गेम्स लूट पाट शामिल नहीं है जो इस रकम को भी बौना कर देगी .ऐसे घटाटोप में ये रकम वापस आये तो कैसे .जब रकम पर कुंडली मारे शासन ही विराजमान है ।
(ज़ारी ..).
सोनिया गांधी एंड कम्पनी ....गत पोस्टों से आगे का सफ़र .....
ReplyDeleteइस बात को साबित करने के लिए कि यू पी ए -२ की मंशा विदेशों में जमा रकम वापस लाने की रही ही नहीं है ,ज्यादा मशक्कत करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी .चंद उद्धरण देना काफी होगा .गौर करें -
फरवरी २००८ में ही जर्मन अधिकारियों ने उन देशों के बारे में विस्तृत सूचना खंगाल ली थी जहां के नागरिकों ने चोरी की रकम यहाँ के एक नाम चीन बैंक (लिश्तेंस्तीं बैंक )में जमा करवा रखी थी ।
इनमें २५० नामी -गिरामी लोग भारत के भी थे .जर्मनी के वित्तीय मंत्रालय ने इन खाताधारियों के नाम सम्बद्ध देशों की सरकारों को मुहैया करवाने की पेशकश भी कर दी थी .लेकिन भारत के सत्ता प्रतिष्ठान ने इसमें जाहिरा तौर पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई ।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने साफ़ लिखा भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और प्रधान मंत्री कार्यालय की इस बाबत ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है कि इस रसूख - दार बैंक में किस किस के लोकर्स हैं ।
बतलादें आपको भारत सरकार की कर सम्बन्धी एक संधि है जर्मनी के साथ(टेक्स ट्रीटी )जिसके तहत कोई भी सूचना कर चोरों की भारत सरकार को गुप्त रूप में ही मुहैया करवाई जा सकती है ।
जब सरकार पर मीडिया और इधर उधर से दवाब बढा सरकार ने बुझे मन से यही पेश का कर दी ।
दोनों में अंतर क्या है .संधि के तहत कोई भी सूचना सार्वजनिक नहीं की जाती है ,अन्दर खाने बात रह जाती है .अन्दर की बात बन जाती है साहब वह ।
पुणे का होर्स -ब्रीडर हसन अली अब आम औ ख़ास के लिए जाना पहचाना नाम है डेढ़ लाख करोड़ की मिलकियत है इस शख्स की स्विस बैंक में .
आयकर विभाग को ७१८४८करोद रूपये का चूना लगा चुका है यह आदमी ।
इस बाबत स्विस सरकार को भेजी रिपोर्ट को अदबदाकर दोष -पूर्ण बनाया गया .ताकि स्विस सरकार कोई वैधानिक कारवाई कर ही न सके ,भारत को कागज़ात भेजे ही ना इसे सुनिश्चित बनाया गया ।
दाखिल दफ्तर हो चुका है अब यह मामला ।
हसन अली अपना आदमी है यह अन्दर की बात है साहब .सत्ता पक्ष के इनर सर्किल का मौसेरा है ।
हवाला के रखवाले यही लोग हैं .हसन अली एक हसन अली दो एंड हसन अली तीन एंड सो ऑन।
हसन अली का पैरहन खींचना खुद नंगा होना है साहब ।
जब तक सूरज चाँद रहेगा ,सोनिया तेरा नाम रहेगा .४६२ अरब रूपये की लूट ढूंढते रह जाओगे जब तक मम्मी जी एंड कम्पनी का संदेहास्पद खाता स्विस बैंक में बरकरार है ।
माँ -बेटे की कुल रकम चुनावी पूर्व घोषणा के मुताबिक़ ३६३ लाख है .अपनी सोहनी के पास कोई कार भी नहीं है ।
तिस पर हिमाकत देखिये मम्मी जी ने १९ नवम्बर २०१० को क्या कहा -"ग्राफ्ट एंड ग्रीड आर ऑन दी राइज़ इन इंडिया "।
१९ दिसंबर२०१० को कोंग्रेस राजकुमार ने कहा -"सीवीयर पनिशमेंट शुड भी गिविन टू दी करप्ट ".
अब इसके आगे हम क्या कहें ?यही न !दे दो बबुआ !