Saturday 25 June 2011

मनमे अतीत की याद लिए फिरते है

निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं 

उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं

अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें
मनमे अतीत की याद लिए फिरते है
               बेकस का कोमल हृदय जला करता है
              निशदिन उनका कृष-गात धुला करता है
               दुखों    की   नाव    बनाये  नाविक -
               दुर्दिन  सागर  पर  किया  करता है

औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं

            जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
           'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
           चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
           वे कुर्सी-कृष्ण का ध्यान किया करते हैं

विविध दोहे

दोहा-खोर

स्वतन्त्र - दोहे

14 comments:

  1. जो सुरा-सुंदरी पान किया करते हैं
    'कल्याण' 'सोमरस' नाम दिया करते हैं
    चाहे कितना भी चीखे-चिल्लाये जनता
    वे कुर्सी-कृष्ण का ध्यान किया करते ह

    Aapka ye aakrosh jan jan ka aakrosh hai.

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया ... सटीक बात कही है ..अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. कुछ ज्यादा तो नहीं समझा, लेकिन पढ़ने में मजा आया और लय,प्रवाह सब कुछ था।

    ReplyDelete
  4. स्वागत है आप सब का |
    आते रहें |
    मार्ग-दर्शन और उत्साहवर्धन की हमेशा जरुरत है |

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  6. उत्साहवर्धन
    हेतु बहुत-बहुत आभार ||

    ReplyDelete
  7. bahut sundar
    chhotawriters.blogspot.cohamare blog se bhi update rahe

    ReplyDelete
  8. ravi ji blog me aane ke liye dhanybaad aate rahe aur hamari nai post par apni raay dete rahe
    chhotawritersblogspot.com

    ReplyDelete
  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच

    ReplyDelete
  10. बहुत ही प्रखर संधान , छद्म-वेशों पर, अभिव्यक्ति की मुखरता , आपकी कुशलता को प्रदर्शित कर रही है ...
    सुंदर कथ्य ,शब्द संयोजन ...शुक्रिया जी /

    ReplyDelete
  11. औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
    संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
    यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
    भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते हैं

    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  12. sach kahi har ek baat. sunder shabdaawali di hai aaj ki sacchayi ko.

    ReplyDelete
  13. औसत से दुगुना भार लिए फिरते हैं
    संग में कितनों का प्यार लिए फिरते हैं
    यदि किसी भिखारी ने उनसे कुछ माँगा
    भाषण का शिष्ट -आचार लिए फिरते ..
    यथार्थ परक बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete