Saturday, 9 November 2013

इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे-

अंधे बाँटे रेवड़ी, लगती हाथ बटेर |
अन्न-सुरक्षा काम भी, मनरेगा का फेर |

मनरेगा का फेर, काम बिन मिले कमीशन |
नगरी में अंधेर, किन्तु मन भावे शासन |

पाई अंधी अक्ल, बंद कर 'रविकर' धंधे |
इक ठो काना पाय, बना दें राजा, अंधे ||

9 comments:

  1. बढ़िया रचना

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  2. सुन्दर. अति सुन्दर.

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  3. आ0 रविकर जी सुंदर कुंडलिया , बधाई आपको ।

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  4. बहुत सुंदर रविकर जी , बहुत ही आनंददायक

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  5. सुन्दर रविकर भाई .

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  6. बहुत बढ़िया रविकर जी !
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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  7. मनरेगा का फेर, काम बिन मिले कमीशन |
    नगरी में अंधेर, किन्तु मन भावे शासन |
    bilkul sahi kaha !

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