(भावानुवाद )
दीखे पीपल पात सा, भारत रत्न महान |
त्याग-तपस्या ध्यान से, करे लोक कल्याण |
करे लोक कल्याण, निभाना हरदम होता |
विज्ञापन-व्यवसाय, मगर मर्यादा खोता |
थापित कर आदर्श, सकल जन गण मन सीखे |
रहे हजारों वर्ष, सचिन पीपल सा दीखे ||
रत्न कोई भी हो सकता है
ReplyDeleteपरिभाषा है उसकी !
sateek
ReplyDeleteसचिन जैसे खिलाड़ी कभी कभी ही होते हैं..
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बढियां है इन पीपल की सार्थकता तभी है जब वह जीवन रुपी वायु से प्राणों को भर दे , सचिन से भी यही उम्मीद करनी चाहिए ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
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