Monday, 25 November 2013
नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे धोखे-
धोखे
देता जा रहा, कब से एक अनार |
सब्जबाग दिखला रहा, आम कई बीमार |
आम कई बीमार, बचे हैं ओस चाटकर |
ख़ास खा रहा खार, सदा अधिकार मारकर |
संसाधन ले चूस, प्रगति के सोते सोखे |
नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे
धोखे
||
3 comments:
Anita
26 November 2013 at 01:25
लोभ हो तो भ्रष्टाचार की जड़ है..
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सुशील कुमार जोशी
26 November 2013 at 05:15
धोखे मत खाईये
जनाब अनार खाईये :)
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Kalipad Prasad
28 November 2013 at 06:52
बहुत खूब रविकर जी !
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लोभ हो तो भ्रष्टाचार की जड़ है..
ReplyDeleteधोखे मत खाईये
ReplyDeleteजनाब अनार खाईये :)
बहुत खूब रविकर जी !
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