(1)
जिंक-पर्त बिन लौह को, खाये जैसे जंग ।
नियत ताप आर्द्रता बिन, बदले मक्खन रंग।
बदले मक्खन रंग, ढंग मानव अलबेला।
पापड़ बेला ढेर, कष्ट बेला ही झेला ।
बिना बिटामिन खनिज, पार नहिं होंगे दुर्दिन ।
लौह-देह भी नष्ट, बचे नहिं जिंक पर्त बिन ।
(2)
रखता सालों-साल ज्यों, रविकर सुदृढ़ गेह ।
सदाचार-शुचि-योग से, करे पुष्ट त्यों देह ।
करे पुष्ट त्यों देह, मरम्मत टूट फूट की ।
सेहत के प्रतिकूल, कभी ना जिभ्या भटकी ।
खट्टे फल सब्जियां, विटामिन सी नित चखता ।
यही विटामिन सुपर, निरोगी हरदम रखता ॥
(3)
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
बहुत सुन्दर स्वस्थ सलाह कुंडलीयां के माधाम से !
ReplyDeleteनई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
बहुत सुंदर रसायन विज्ञान व्याख्यान :)
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सुन्दर व्याख्या ,दीपोतस्व पर्व मंगलमय हो सादर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
सुन्दर कुंडली विज्ञान कुंडली कहो इसे माई बाप !
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं स्वस्थ सलाह !!
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