(1)
कम्युनल नेहरू कहें, जब निजाम-संताप |
रिश्ते में लगने लगे, लौह-पुरुष तब बाप |
लौह-पुरुष तब बाप, आज अडवाणी बोले |
कांग्रेसी खुरपेंच, विरासत खा हिचकोले |
छद्म धर्म निरपेक्ष, वसूले अब भी किश्तें |
लेकिन आज पटेल, संघ के लिए फ़रिश्ते ||
(2)
लोहा है हर देह में, भरा अंग-प्रत्यंग |
मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |
मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |
नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |
लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
मगर अधिकतर देह में, मोह-मेह का जंग |
मोह-मेह का जंग, जंग लड़ने से डरता |
नीति-नियम से पंगु, कीर्ति कि चिंता करता |
लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
किया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
लौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
ReplyDeleteकिया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
बहुत सुंदर आ. रविकर जी .
वाह ! अति सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ...........
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteकल धोती पुरुष थे आज लोह :)
sarthak prastuti .aabhar
ReplyDeleteलौह पुरुष पर एक, हमें जिसने है मोहा |
ReplyDeleteकिया एकजुट देश, लिया दुश्मन से लोहा ||
सुन्दर प्रस्तुति बधाई।