रखिये तेज सहेजकर, खुराफात से दूर |
लोकपाल का गर्व भी, हो सकता है चूर |
हो सकता है चूर, घूर मत कन्याओं को |
अबला कहो जरूर, किन्तु रस्ता मत रोको |
किया कालिका क्रुद्ध, मजा करनी का चखिए |
लड़ो स्वयं से युद्ध,, स्वयं दुष्कृत्य परखिये ||
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जमाली चाय दे स्वर्गिक आनंद का अहसास Best Herbal Tea
DR. ANWER JAMAL
माली हालत देश की, होती जाय खराब |
आधी आबादी दुखी, आधी पिए शराब |
आधी पिए शराब, भुला दुःख अद्धा देता |
चारित्रिक अघ-पतन, गला अपनों का रेता |
रविकर कम्बल ओढ़, पिए नित घी की प्याली |
सुरा चाय पय छोड़, छोड़ता चाय जमाली ||
यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?
DR. ANWER JAMAL
(1)
आगे मुश्किल समय है, भाग सके तो भाग |
नहीं कोठरी में रखें, साथ फूस के आग |
साथ फूस के आग, जागते रहना बन्दे |
हुई अगर जो चूक, झेल क़ानूनी फंदे |
जिनका किया शिकार, आज वे सारे जागे |
मिला जिन्हें था लाभ, नहीं वे आयें आगे ||
बंगारू कि आत्मा, होती आज प्रसन्न |
सन्न तहलका दीखता, झटका करे विपन्न |
झटका करे विपन्न, सताया है कितनों को |
लगी उन्हीं कि हाय, हाय अब माथा ठोको |
गोया गोवा तेज, चढ़ी थी जालिम दारू |
रंग दे डर्टी पेज, देखते हैं बंगारू ||
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बेटी की सहेली का यौन शोषण करने के बाद 'तहलका' के संपादक ने दिया इस्तीफा
chandan bhati
हलका-फुलका दोष है, कर ले पश्चाताप |
यौनोत्पीड़न के लिए, कुर्सी छोड़े आप |
कुर्सी छोड़े आप, मात्र छह महिना काहे |
सहकर्मी चुपचाप, बॉस जो उसका चाहे |
लेता आज संभाल, देख लेता कल कल का |
तरुण तेज ले पाल, सेक्स से मचे तहलका ||
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दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
दो मंत्रालय दो बना, रेप और आतंक |
निबट सके जो ठीक से, राजा हो या रंक |
राजा हो या रंक, बढ़ी कितनी घटनाएं-
जब तब मारे डंक, इन्हें जल्दी निबटाएं |
तंतु तंतु में *तोड़, बड़े संकट में तन्त्रा |
कैसे रक्षण होय, देव कुछ दे दो मन्त्रा -
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कुछ से हमको कुछ से तुमको, हमदर्दी यह घातक है |
सत्य सत्य सा नहीं ताकता, ऐसा दृष्टा पातक है |
अपनों में जो खोट दिखी तो, नजर उधर से फेर लिया-
गैरों का गिरेबान पकड़ ले, वही ब्लॉग पर स्नातक है ||
सत्य सत्य सा नहीं ताकता, ऐसा दृष्टा पातक है |
अपनों में जो खोट दिखी तो, नजर उधर से फेर लिया-
गैरों का गिरेबान पकड़ ले, वही ब्लॉग पर स्नातक है ||
"तेजपाल का तेज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
मिटटी करे पलीद अब, यही तरुण का तेज |
गलत ख्याल वो पाल के, छोड़े अपनी मेज |
छोड़े अपनी मेज, झुकाई कीर्ति पताका |
करता नहीं गुरेज, बना फिरता है आका |
करती महिला केस, हुई गुम सिट्टी पिट्टी |
सोमा ज्यादा तेज, दोष पर डाले मिटटी ||
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बहुत सार्थक और उचित संकलन। मौजूदा हालात के मद्देनजर बहुत ही सार्थक रचना
ReplyDeleteउम्दा चयन सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक !
ReplyDelete(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
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