Monday 25 November 2013

नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे धोखे-

धोखे देता जा रहा, कब से एक अनार |
सब्जबाग दिखला रहा, आम कई बीमार |

आम कई बीमार, बचे हैं ओस चाटकर |
ख़ास खा रहा खार, सदा अधिकार मारकर |

संसाधन ले चूस, प्रगति के सोते सोखे |
नित रविकर मनहूस, खाय धोखे पे धोखे ||

3 comments:

  1. लोभ हो तो भ्रष्टाचार की जड़ है..

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  2. धोखे मत खाईये
    जनाब अनार खाईये :)

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  3. बहुत खूब रविकर जी !

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