राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत ना आज्ञा बिन पैसा रे ।।
हस्पताल में राम जी, सीता को ले जाँय ।
कन्या का होता जनम, नर्स मिठाई खाँय ।।
होत ना कन्या बिन पैसा रे ।
किन्नर चौदह धमकते, होय गली में शोर ।
इक्यावन सौ नोचते, देते बांह मरोर ।
बचे न भैया बिन पैसा रे ।
नियमित टीका-करण हो, कन्या के प्रति फर्ज ।
संरक्षित पूरी हुई, पर रिश्वत का मर्ज ।
थमें ना कबहूँ बिन पैसा रे ।
छठियारी में गाँव भर, छक कर खाया भोज ।
पंचायत फाइन करे, इक ठो गलती खोज ।
मिली न छुट्टी बिन पैसा रे ।।
पांच साल की हो चली, बिटिया ज्यों-स्कूल ।
रविकर को भारी पड़ी, जन्म प्रमाण की भूल ।
बने न भैया बिन पैसा रे ।
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