कवित्त नहीं है
आयशा का तथाकथित, पार्टनर ज्यों पति बना ।
लेंडर से एतराज था, भू-पति को लेती मना ।।
इस्तेमाल सानिया का, चारा जैसा कर रहा ।
पुरुष-वाद आरोप है, प्लेयर ने झटपट कहा ।।
ओलम्पिक में पदक का, अवसर टेनिस युगल में ।
पेस-महेश ही श्रेष्ठ हैं, पर दिया बाँध बण्डल में ।।
बोपन्ना से मक्कारी, सीखती जोड़ जुगाड़ में ।
तुम भी कर देती मना, देश जाय फिर भाड़ में ।।
अहमक टकराते अहम् , अहम् खेल का दौरा है ।
फैलाते जग में भरम, खड़ा करे सौ *झौरा है ।।
*झंझट
रोचक अन्दाज में प्रकरण..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
खेल में भी राजनीति आ गयी है ! भगवान ही बचाए देश को !बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया सानिया मिर्ज़ा ,आइना तो दिखाया आपने इन खेल बहादुरों को ....ऐंठे हुए थे ये ममता बनर्जी से .
ReplyDeleteखेल में भी पितृ सत्ता क़ाबिज़ है ...
ReplyDeleteसानिया की तारीफ करनी पड़ेगी जिसने देश के महत्त्व को पहले रखा बहुत बढ़िया अंदाज में प्रस्तुति
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