मदिरा खैनी माँस तज, बढ़े उम्र दस साल।
जुड़े जवानी में नही, अपितु बुढ़ापा-काल।
अपितु बुढ़ापा काल, ख्वाहिशें खों खों खोवे।
होवे धीमी चाल, जीभ का स्वाद बिलोवे।
इसीलिए बिन्दास, जवानी जिए सिरफिरा।
खाये खैनी माँस, पिये रविकर भी मदिरा ।।
विषधर डसना छोड़ता, पड़ता साधु प्रभाव।
दुर्जन पत्थर मार के, किन्तु लगाते घाव।
किन्तु लगाते घाव, हुआ जब जीना दूभर।
करे सर्प फरियाद, साधु फिर गया सिखाकर।
कह रविकर समझाय, मारते जो भी पत्थर।
उन्हे डसो मत आप, किन्तु फुफ्कारो विषधर।।
विषधर डसना छोड़ता, पड़ता साधु प्रभाव।
दुर्जन पत्थर मार के, किन्तु लगाते घाव।
किन्तु लगाते घाव, हुआ जब जीना दूभर।
करे सर्प फरियाद, साधु फिर गया सिखाकर।
कह रविकर समझाय, मारते जो भी पत्थर।
उन्हे डसो मत आप, किन्तु फुफ्कारो विषधर।।
बहुत सुन्दर।
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