बैठा जाये दिल मुआ, कैसे बैठा जाय |
उठो चलो आगे बढ़ो, अब आलस ना भाय |
अब आलस ना भाय, अगर सुरसा मुँह बाई |
झट राई बन जाय, ताक मत राह पराई |
उद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
धरे हाथ पर हाथ, नहीं अब बैठा जाये ||
उठो चलो आगे बढ़ो, अब आलस ना भाय |
अब आलस ना भाय, अगर सुरसा मुँह बाई |
झट राई बन जाय, ताक मत राह पराई |
उद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
धरे हाथ पर हाथ, नहीं अब बैठा जाये ||
आपकी लिखी रचना शनिवार 28 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुंदर ।
ReplyDeleteस्वागत है :)
वाह ! बहुत दिनों बाद ..
ReplyDeleteअपना हाथ जगन्नाथ .....खूब कहा......
ReplyDeleteआभार भाई साहब आपकी टिप्पणियों का। बहुत बढ़िया लिखा है आपने :
ReplyDeleteउद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
धरे हाथ पर हाथ, नहीं अब बैठा जाये ||
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteउद्यम करता सिध्द.
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का कैसे हो भाई साहब (रविकर भाई ,मैं यहां अपलैंड व्यू ,कैण्टन मिशिगन में हूँ नवंबर मध्य तक .
ReplyDeleteउद्यम करता सिद्ध, बिगड़ते काम बनाये |
ReplyDeleteअच्छी रचना मत भूल रे प्राणी उद्दम ही करम है तो यही धर्म है