Saturday, 7 June 2014

कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये--

थाने में उत्कोच दे, कोंच कोंच करवाल । 
तन मन नोंच खरोच के, दे दरिया में डाल । 

दे दरिया में डाल, बड़े अच्छे दिन आये । 
कर ले भोग विलास, आधुनिकता उकसाये। 

रवि कर मत संकोच, पड़े सैकड़ों बहाने । 
व्यस्त आज-कल कृष्ण, नहीं कालिया नथाने ॥  

4 comments:

  1. हमेशा की तरह लाजवाब ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-06-2014) को ""मृगतृष्णा" (चर्चा मंच-1637) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. रवि कर मत संकोच, पड़े सैकड़ों बहाने ।
    व्यस्त आज-कल कृष्ण, नहीं कालिया नथाने ॥

    बहुत खूब !

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