पुरानी रचना
पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई |
थाम नाव पतवार, जमा कर पाई पाई ||
लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता ।
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने ।
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥
बहुत सुंदर ।
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/groups/359984537404527/
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (30-06-2014) को "सबसे बड़ी गुत्थी है इंसानी दिमाग " (चर्चा मंच 1660) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुंदर...
ReplyDeleteबहुत खूब... बधाई.
ReplyDeleteक्या बात है प्रजातंत्र के भारतीय रंगों की :
ReplyDeleteलाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता ।
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने ।
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥