(1)
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग ।
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग ।
मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग ।
देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी ।
कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी ।
कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े ।
कहीं चाल अश्लील, कहीं पर छोटे कपड़े ॥
(2)
पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |
(2)
पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |
ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना ।
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना ।
मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े ।
पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥
बहुत खूब वाह ।
ReplyDeleteस्त्री की व्यथा... सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेबाक अभिवयक्ति -----
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