Tuesday, 1 July 2014

कहीं चाल अश्लील, कहीं कह छोटे कपड़े-

(1)
पड़े हुवे हैं जन्म से, मेरे पीछे लोग । 
मरने भी देते नहीं, देह रहे नित भोग । 

देह रहे नित भोग, सुता भगिनी माँ नानी । 
कामुकता का रोग, हमेशा गलत बयानी । 

कोई देता टोक, कैद कर कोई अकड़े । 
कहीं चाल अश्लील, कहीं पर छोटे कपड़े ॥
(2)

पड़े हुवे हैं जन्म से मेरे पीछे मर्द |
मरने भी देते नहीं, ये जालिम बेदर्द |


ये जालिम बेदर्द, हुआ हर घर बेगाना । 
हैं नाना प्रतिबन्ध, पिता पति मामा नाना । 

मिला नहीं स्वातंत्र्य, रूढ़िवादी हैं जकड़े । 
 पुरुषवाद धिक्कार, देखते रविकर कपड़े ॥ 

3 comments:

  1. स्त्री की व्यथा... सुन्दर रचना, बधाई.

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  2. बहुत सुंदर बेबाक अभिवयक्ति -----

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