आदरणीय!! व्याकरण की दृष्टि से क्या
यह कुण्डलियाँ छंद खरा उतरता है ??
आलोचक चक चक दिखे, सत्ता से नाराज ।
अच्छे दिन आये कहाँ, कहें मिटायें खाज ।
कहें मिटायें खाज, नाज लेखन पर अपने।
रखता धैर्य समाज, किन्तु वे लगे तड़पने ।
बदलोगे क्या भाग्य ? मित्र मत उत्तर टालो ।
कर दे यह तो त्याग, अन्य का भाग्य सँभालो ॥
अब खुजली का किया जा सकता है ? दवा भी नहीं बनी है ऐसी खाज के लिये । खुजियाते ही रहना है लगे रहेंगे ।सत्ता अपनी जगह खुजली अपनी जगह दोनो अपनी अपनी जगह ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 20/07/2014 को "नव प्रभात" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1680 पर.
इस खाज का कोई इलाज नहीं!
ReplyDeleteआप तो कुण्डलिया छन्द के माहिर हो।
ReplyDeleteहमें तो अच्छी लगी।
गुण-दोष आप देखिए।
हम तो बस आनंद ले रहे हैं इस खाज का ...
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